उत्तर प्रदेश 2022 के चुनावों में सत्ता के करीब पहुंचने के लिये बिछाई जा रही सियासी ‘बिसात’, सभी दल कर रहे एक-दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगाने की कवायद
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Mohammad Siraj
यूपी 2022 के चुनावों में सत्ता के करीब पहुंचने के लिये बिछाई जा रही सियासी ‘बिसात’, सभी दल कर रहे एक-दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगाने की कवायद
सपा के सामने कई चुनौतियां
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के लिए ये विधानसभा चुनाव पहले से कहीं ज्यादा अहम है. मायावती अपने दलित वोटों के सहारे सत्ता पर काबिज होती रही हैं, लेकिन हाल के दिनों में बहुजन समाज पार्टी से दलितों के साथ पिछड़े वर्ग के बड़े चेहरे अलग होते जा रहे हैं. इन लोगों को या तो बसपा ने खुद पार्टी से निकाल दिया या फिर धीरे-धीरे लोगों ने ही किनारा कर लिया. जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं बसपा भी कोर वोटरों से अलग दूसरे वोटों में भी सेंध लगाने की कोशिश कर रही है. हालांकि इतना तय है कि बसपा को बेहतर प्रदर्शन करने के लिए पिछड़े वोटरो के मोर्चे पर अपनी मजबूत तैयारी करनी होगी। मौजूदा समय में हालात यह हैं कि बसपा में पिछड़े और दलित नेताओं का पार्टी से छिटकना लगातार जारी है. हाल के दिनों में दलितों और पिछड़ों के लिए बड़े नेता माने जाने वाले लोगों में आर के पटेल, सोनेलाल पटेल, एसपी बघेल, डॉक्टर मसूद अहमद, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, अब्दुल मन्नान, नरेंद्र कश्यप, आर के चौधरी, इंद्रजीत सरोज, जुगल किशोर, जंग बहादुर पटेल और राम लखन वर्मा जैसे बड़े नेताओं ने पार्टी से किनारा किया है. हालात बताते हैं कि पार्टी को इन लोगों के अलग होने का बड़ा खामियाजा उठाना पड़ेगा। हालांकि चुनाव जीतने की जंग से इतर बसपा के लिए इस बार विधानसभा चुनाव में चुनौती है कि कैसे वह अपना अस्तित्व बचाए. इसके लिए पार्टी के नेता सतीश चंद्र मिश्र ने अभियन शुरू किया है, जिसमें पारंपरिक वोटों के अलग उन्होंने ब्राह्मणों को लुभाने के लिए सम्मेलनों का आयोजन शुरू किया है. बसपा के इस कदमा से साफ पता चलता है कि उसका कोर वॉटर उस से खिसक रहा है, इसीलिए वोटरों की नई बिसात बिछाने के लिए ब्राह्मणों और दूसरी जातियों की तरफ बसपा ने रुख किया है।
प्रियंका गांधी ने भी लगाया पूरा जोर
उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाशिए पर आ चुकी कांग्रेस ने भी अपनी राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के जरिए सरकार को घेरने और बड़े मुद्दों पर आवाज उठाने की कोशिश की है, लेकिन उनके राज्य से गायब रहने के चलते ना तो अभी पार्टी की कोई दिशा और दशा तय हो सकी है और ना ही बड़े मुद्दों पर कांग्रेस की बेहतर मौजूदगी साबित हुई है. हालांकि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने अपनी आखरी विजिट के दौरान साफ किया कि आने वाले दिनों में वह प्रदेश में रहकर एक मजबूत विपक्ष की तरह लड़ाई लड़ेंगी, लेकिन हकीकत ये है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है. उसकी एक बड़ी वजह यह भी है की पार्टी के भीतर ही कई गुट अलग-अलग काम कर रहे हैं, जिनका उद्देश्य पार्टी को जिताना नहीं बल्कि मौजूदा संगठन की व्यवस्था को नीचा दिखाना है. ऐसे में कोई चमत्कार या फिर प्रियंका का कोई बड़ा कदम पार्टी में जान फूंक सकता है, लेकिन उसकी भी उम्मीद कम ही दिखती है। अगर कुल मिलाकर मौजूदा सियासी हालात की बात करें तो सभी सियासी पॉर्टियां अपने कोर वोटर्स के साथ-साथ इस कोशिश में है कि कैसे दूसरे वोटर्स को अपने पाले में किया जाये. जबकि इस कोशिश के लिये बडे़ नेता और संगठन अपने तरह से हर वो रणनीति बना रहे हैं, जिससे कि विधानसभा 2022 के चुनावों में सत्ता के करीब पहुंचा जा सके।
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