आपके पिता बनने में रोड़ा अटका सकता है प्लास्टिक बोतल का पानी, बॉटल का कई दिन पुराना पानी है जहरीला, दूषित पानी ले रहा सड़क हादसों के बराबर जान, ब्रेस्ट मिल्क में भी मिला माइक्रो प्लास्टिक
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Mohammad Siraj
आपके पिता बनने में रोड़ा अटका सकता है प्लास्टिक बोतल का पानी, बॉटल का कई दिन पुराना पानी है जहरीला, दूषित पानी ले रहा सड़क हादसों के बराबर जान, ब्रेस्ट मिल्क में भी मिला माइक्रो प्लास्टिक
पानी दो शब्दों में सिमटा, पर जिंदगी के लिए बेहद अहम. जल, नीर कहा जाने वाला यह पानी वैसे तो नेचुरल रिसोर्स है, जिस पर हम सबका हक है. मगर, इसी पानी के कारोबार से खूब पैसे कमाए जा रहे हैं. साथ ही हमारे इस नेचुरल रिसोर्स में सेंध भी लगाई जा रही हैं. जिन प्लास्टिक की बोतलों में पानी को मिनरल वॉटर कहकर बेचा जा रहा है, उसका सेहत के साथ-साथ हमारी धरती को भी नुकसान पहुंच रहा है.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 1 नवंबर को इंडिया वाटर वीक, 2022 का उद्घाटन किया, जो 5 नवंबर तक मनाया जा रहा है. इसकी थीम ‘सतत विकास और समानता के लिए जल सुरक्षा’ रखी गई. राष्ट्रपति ने कहा-पानी के बिना जीवन की कल्पना करना असंभव है. आने वाली पीढ़ियों को बेहतर और सुरक्षित कल देने में सक्षम होने का एकमात्र तरीका जल संरक्षण है.
आंखों का पानी मरना यानी बेशर्म होना, जैसे हमने अक्सर ये कहते सुना होगा कि लोगों की आंखों का पानी मर गया है. उन्हें जरा भी लिहाज नहीं है. दरअसल, पानी की बोतलें बनाने में जो प्लास्टिक इस्तेमाल होता है, वह एक पॉलीमर है. यह कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और क्लोराइड से मिलकर बना होता है. ‘हॉर्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पानी की ज्यादातर बोतलों में पॉली कार्बोनेट प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है. पानी की बोतल को लचीला बनाने वाले इसमें ‘फाथालेट्स’ और ‘बीसाफेनॉल-ए’ नाम के केमिकल डाले जाते हैं. ये दिल की बीमारियों या डायबिटीज की वजह बन सकते हैं.
प्लास्टिक के बोतलबंद पानी पीने से चाहे-अनचाहे हमारे शरीर में माइक्रोप्लास्टिक घुल रहा है. ‘फ्रंटियर्स डॉट ओआरजी’ की रिसर्च के मुताबिक, बोतलबंद पानी गर्मी के संपर्क में आने पर सबसे ज्यादा नुकसान करता है. जैसे कार, जिम या स्विमिंग पूल या किसी गेम के दौरान धूप में रखे बोतलबंद पानी को पीने से सेहत को नुकसान पहुंचता है. पानी की ये बोतलें जब भी गर्मी के संपर्क में आती हैं या लंबे समय तक इनमें पानी रखा जाता है तो ये बोतलें पानी में माइक्रोप्लास्टिक छोड़ने लगती हैं और जब यही पानी पीते हैं तो ये बॉडी के हॉर्मोंस के संतुलन बनाए रखने वाले एंडोक्राइन सिस्टम को हिलाकर रख देता है.
लंबे समय तक ऐसे पानी पीने से हॉर्मोनल इम्बैलेंस, अर्ली प्युबर्टी, इनफर्टिलिटी और यहां तक कि लिवर को भी नुकसान पहुंचता है. नोएडा एंडोस्कॉपी सेंटर में गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ. कुणाल दास बताते हैं कि माइक्रो प्लास्टिक बहुत महीन पार्टिकल्स होते हैं. प्लास्टिक के बोतल में पानी पीने से ये खाने की नली से होते हुए शरीर के दूसरे अंगों में पहुंच जाते हैं. टिश्यूज और ब्लड में भी चले जाते हैं. अब तो ब्रेस्ट मिल्क में भी माइक्रो प्लास्टिक मिले हैं. हाल में हुई रिसर्च में बताया गया है कि माइक्रो प्लास्टिक के कारण लोगों में कैंसर हो रहा है. साथ ही डायबिटीज और दिल की बीमारियां भी हो रही हैं.
प्लास्टिक की बोतलें बरसों तक नष्ट नहीं होतीं, इसलिए ये धरती की सेहत के लिए नुकसानदेह है. इससे हमारी पृथ्वी और गर्म हो रही है। 1 लीटर पानी की बोतल बनाने में 1.6 लीटर पानी बर्बाद होता है. न्यूज एजेंसी रायटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में हर 1 मिनट में 10 लाख प्लास्टिक बोतलें खरीदी जा रही हैं. 2009 से अब तक इतनी ज्यादा प्लास्टिक बोतलें बेची जा चुकी हैं कि अगर उन्हें जोड़ा जाए तो मुंबई या न्यूयॉर्क के मैनहट्टन आइलैंड पर एक ऊंचा टावर ही बन जाए.
‘यूरोमॉनिटर इंटरनेशनल’ की एक रिपोर्ट की बात करें तो 2021 में ही पूरी दुनिया में 480 अरब प्लास्टिक की बोतलें बेची गईं. वहीं, हर साल 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा सिर्फ समुद्र में ही फेंक दिया जाता है. पानी के मोल होना यानी बहुत सस्ता होना. हमें अपना ही पानी खरीदने के लिए अच्छी-खासी कीमत चुकानी पड़ रही है. आपको यकीन नहीं होगा, मगर ये सच है कि 2021 तक बोतलबंद पानी का दुनिया भर में कारोबार करीब 24 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच चुका हैै. अमेरिका में ‘यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन’ ने अपनी एक स्टडी में खुलासा किया कि लोग नल के पानी के मुकाबले बोतलबंद पानी ज्यादा पी रहे हैं.
अमेरिका तो इस मामले में सबसे आगे है। अमेरिकी हर साल करीब 62 अरब गैलन बोतलबंद पानी पी जाते हैं. ये हाल तब है, जब आज से 10 साल पहले ही अमेरिकी स्वास्थ्य एजेंसी FDA ने बीसाफेनाल-A पर रोक लगा दी थी, जो पैकेज्ड पानी का बेसिक फॉर्मूला है. कई कंपनियों ने BPA केमिकल के इस्तेमाल पर रोक लगा दी तो कई अब भी इसे यूज कर रही हैं. 2015 में जर्मनी के कई रिसर्चर ने बोतलबंद पानी पर स्टडी की, जिसमें बोतलबंद पानी में करीब 25,000 हानिकारक केमिकल मिले. यह स्टडी ‘जर्नल प्लोस’ में भी छपी. 2018 में न्यूयॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने भी प्लास्टिक की बोतलबंद पानी की जांच की थी. उन्हें नल के पानी के मुकाबले बोतलबंंद पानी में दोगुनी मात्रा में प्लास्टिक पार्टिकल्स मिले.
लैंसेट’ जर्नल में छपी ‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी’ के मुताबिक, 2017 में दूषित पानी पीने से करीब 12 लाख लोगों को जान गंवानी पड़ी. यह संख्या दुनियाभर में उसी साल सड़क हादसों में मारे जाने वाले लोगों की संख्या के आसपास थी. साफ पानी न मिल पाने की वजह से कॉलरा, डायरिया, हेपेटाइटिस ए, टायफायड, पोलियो और डेंगू जैसी बीमारियां होने का खतरा ज्यादा रहता है, जो जानलेवा साबित होती हैं. ये बीमारियां बच्चों में और ज्यादा खतरनाक शक्ल लेती हैं।
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