माया का दांव: सतीश को छांव
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Mohammad Siraj

माया का दांव: सतीश को छांव
सतीश मिश्र को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करेंगी माया ?
बसपा का बड़ा ब्राह्मण चेहरा हैं सतीश मिश्र
2007 में सोशल इंजीनियरिंग का सफल प्रयोग कर चुकी है बसपा
नेताओं से फीडबैक ले रहीं मायावती
13% वोट हैं ब्राह्मणों के उप्र में
23% है दलितों का वोट उप्र में
प्रदेश में सफल हो रहे हैं बसपा के ब्राह्मण सम्मेलन
लखनऊ। 22 के उप्र विधानसभा चुनाव की बेला पर ब्राह्मणों को लुभाने के लिए बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष और चार बार की प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने पार्टी के वरिष्ठ नेता और ब्राह्मण चेहरे सतीश मिश्र को जिस तरह जुटा दिया है वह सोशल इंजीनियरिंग का उनका आजमाया हुआ फार्मूला है जो उन्हेें प्रदेश में सत्ता का स्वाद चखा चुका है। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में भी मायावती के इस दांव से हलचल है। चूंकि भाजपा ब्राह्मण वोटों को पार्टी की पूंजी मानकर चल रही है इसलिए वह निश्चिंतता का प्रदर्शन कर रही है। खैर, राजनीतिक गलियारों में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि सतीश मिश्र अगर ब्राह्मणों को पार्टी के पक्ष में झुकाने में कामयाब रहे तो क्या मायावती इस ब्राह्मण नेता को प्रदेश का मुख्यमंत्री बना सकतीं हैं। यूं तो मायावती के राजनीतिक चरित्र को देखते हुए यह दूर की कौड़ी है लेकिन अगर यह चर्चा चली है तो आईये इसके पक्षों पर विचार कर लेते हैं। ऐसा माना जा रहा है कि यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में फिर सत्ता हासिल करने के लिए बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन के बाद एक और मास्टर स्ट्रोक खेलने पर पर गंभीरता से विचार कर रही हैं। मायावती के निकटतम सूत्रों का दावा है कि बसपा को सत्ता में वापस लाने के लिए खुद को मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी से पीछे कर मायावती बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर सकती हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार अगर बसपा ऐसा करती है तो निश्चित रूप से यूपी की राजनीति एक नया मोड़ लेगी और सभी राजनीतिक पार्टियों के सामने एक चुनौती हो सकती है। बसपा को इस मास्टर स्ट्रोक से पूर्वांचल ही नहीं पश्चिमी यूपी में फायदा हो सकता है। बसपा सुप्रीमो मायावती की इस चाल से सभी राजनीतिक दलों को भी फिर से नए समीकरण बनाने पड़ सकते हैं।
पार्टी सूत्रों के अनुसार ब्राह्मण समाज को लामबंद करने के लिए सतीश मिश्रा को सीएम कैंडिडेट घोषित करने को लेकर बसपा के अंदर भी तेजी से चर्चा हो रही है। मायावती बसपा के सबसे बड़े ब्राह्मण चेहरे सतीश चंद्र मिश्रा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के फायदे और नुकसान के बारे में भी पार्टी के अंदर नेताओं से फीडबैक ले रही हैं। ऐसे में काफी समय से प्रबुद्ध सम्मेलन करने को लेकर ब्राह्मण समाज को जोड़ने की कोशिश कर रहे सतीश चंद्र मिश्रा सीएम चेहरा बनाने से पार्टी को फायदा हो सकता है। मायावती ने पिछले दिनों प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि बसपा के ब्राह्मण जोड़ो अभियान व प्रबुद्ध सम्मेलनों से विपक्षी दल परेशान हैं। योगी सरकार की तरफ से प्रबुद्ध सम्मेलन करने में अड़ंगेबाजी लगाई जा रही है।
दरअसल, यूपी की राजनीति में बसपा दलितों के वोट बैंक के आधार पर राजनीति करती रही हैं। मायावती को लग रहा है कि अगर ब्राह्मण चेहरे के रूप में सतीश चंद्र मिश्रा को आगे किया जाएगा, तो इसका बड़ा फायदा बसपा को विधानसभा चुनाव में हो सकता है। दलितों के 23% वोट बैंक में ब्राह्मणों का अगर 13% वोट बैंक एक साथ लाने में मायावती सफल होती हैं, तो स्वाभाविक बात है कि इसका फायदा मायावती की पार्टी को ही होगा। सूत्रों के अनुसार क्या दलितों के बीच सतीश चंद्र मिश्रा को मायावती के बराबर तवज्जो मिल पाएगी और बसपा कैडर के जो मूल वोट बैंक से जुड़ी जो जातियां हैं, क्या वह सतीश चंद्र मिश्रा को स्वीकार कर पाएंगी। इन्हीं सब पहलुओं पर विचार करते हुए मायावती पार्टी के कई नेताओं से अंदरखाने फीडबैक ले रही हैं। सतीश मिश्रा को अगर मुख्यमंत्री कैंडिडेट घोषित किया जाता है इसके क्या फायदे होंगे और क्या नुकसान होगा। इन्हीं सभी समीकरणों पर मायावती नजर बनाकर मंथन में जुटी हुई हैं।
सूत्र कह रहे हैं कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने 2007 के विधानसभा चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला दिया था और इसी फार्मूले के तहत ब्राह्मण दलित के सहारे सरकार बनाने में बसपा सफल हुई थी। तब भी सतीश मिश्र की बड़ी भूमिका रही है और इसके बाद से मिश्र मायावती की गुडबुक में सबसे ऊपर हैं। ऐसे में दुबारा अगर सतीश मिश्र को आगे कर सोशल इंजीनियरिंग के साथ-साथ ब्राह्मण चेहरे के रूप में सतीश मिश्रा को आगे किया जाए तो क्या 2007 के विधानसभा चुनाव वाली सफलता दोहराई जा सकती है। 2007 में ब्राह्मण, दलित और अति पिछड़े समाज को टिकट में भागीदारी दी गई थी और यह रणनीति सफल हुई और इसी का परिणाम था कि बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बन पाई थी। अगर निश्चित रूप से मायावती इस फार्मूले पर चल पड़ी तो विशेषज्ञों का अनुमान है कि मुस्लिम वोट भी पार्टी की ओर मुड़ सकता है। सूत्र कहते हैं कि इन चुनावों में मुस्लिम अब तक पशोपेश में है। अखिलेश, कांग्रेस या बहुजन समाज पार्टी उसके राडार पर हैं तो लेकिन अंतिम दौड़ में जो पार्टी बाजी मारती दिखेगी उसका साथ मुस्लिम पकड़ सकता है। मुस्लिम नेता असद्दुदीन ओवैसी भी मायावती के साथ रहने का इशारा कर चुके हैं। अब अगर इन सब चीजों को ध्यान में रखते हुए, पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए बहिन जी खुद कुर्सी की लालसा को दांव पर लगा भी दें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
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