केजरीवाल की हार… AAP का क्या होगा ?
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विशेष संवाददाता लखनऊ उत्तर प्रदेश
(ऋषभ राय न्यूज 24 खबर लेखक)
दिल्ली का फ़ैसला आ गया है और अब हार-जीत पर मंथन हो रहा है.लेकिन सिर्फ़ 2 फ़ीसद वोट के अंतर ने दिल्ली में सत्ता परिवर्तन कर दिया. इसीलिए तो कहा जाता है कि हर एक वोट ज़रूरी होता है. खैर दिल्ली में आम आदमी पार्टी का किला ढह गया है. पार्टी के दो सबसे बड़े चेहरे अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया अपनी सीटें भी नहीं बचा पाए है. या कहे तो जहां से आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ है. वहीं उसका घर विखर गया, ढह गया. केजरीवाल ने 2013 में 28 सीटों के साथ दिल्ली की राजनीति शुरू की थी.. इसके बाद 2015 में AAP ने 70 में से 67 सीटें जीतीं और 2020 में सीटों की संख्या 62 रही. लेकिन 2025 आते आते AAP 70 में से 22 सीटों पर सिमट गई है… आम आदमी पार्टी एक आंदोलन से निकली हुई पार्टी है. यहां सवाल ये उठता है कि… क्या अब दिल्ली में डैमेज होने से पार्टी बिखर जाएगी ? ऐसा इसलिए की. इससे जुड़े लोग पेशेवर पॉलिटिशियन नहीं हैं. सत्ता से बाहर हो जाने पर एक बड़ा वर्ग इस पार्टी को छोड़कर जा सकता है. हाल ही में 10 मौजूदा विधायकों ने AAP छोड़कर बीजेपी जॉइन की है. ऐसे में जो लोग दूसरी पार्टियों से आए थे, वो भी अपनी मूल पार्टी में लौट सकते हैं. अगर हम बात करें 2022 की तो आम आदमी पार्टी ने दिल्ली मॉडल का खुब प्रचार किया था. जिसके दम पर पंजाब का विधानसभा चुनाव जीता था. वहीं गुजरात में कई जगह पर नंबर दो पार्टी के रूप में पहचान बनाई थी. लेकिन अब सवाल ये उठता है कि दिल्ली में AAP हारी तो दो साल बाद पंजाब और गुजरात में होने वाले चुनाव में भी पार्टी को नुकसान हो सकता है ?. साथ ही सवाल ये भी उठता है कि. दिल्ली चुनाव हारने से केजरीवाल की इमेज पर बड़ा डेंट पड़ा है ? इसे हम ऐसे समझते है… जब अन्ना आंदोलन से लेकर आम आदमी पार्टी बनने तक अरविंद केजरीवाल केंद्र में रहे हैं. पार्टी में उनकी ही चली है. ना कि किसी और की जिस किसी ने केजरीवाल का विरोध किया या चुनौती दी, उसे पार्टी से बाहर होना पड़ा है. चाहे वो योगेंद्र यादव हों, प्रशांत भूषण हों या फिर कुमार विश्वास। वैसे ही इस चुनाव में हार का ठीकरा केजरीवाल के सिर पर ही फूटेगा. क्योकि शराब घोटाले में जमानत मिलने के बाद केजरीवाल ने 15 सितंबर को इस्तीफा देते हुए कहा था कि. मैं सीएम की कुर्सी पर तब तक नहीं बैठूंगा, जब तक जनता अपना निर्णय न सुना दे. तो अब जनता ने अपना निर्णय सूना दिया है. केजरीवाल के हारने से ये साबित हो गया है कि. जनता ने उन्हें बेईमान मानकर खारिज कर दिया. तो वहीं अब AAP दिल्ली चुनाव हारने के बाद सबसे पहले और अपने दूसरे गढ़ पंजाब को बचाने में जुट जाएगी. दिल्ली हारने से पंजाब के आप नेताओं का मॉरल डाउन होगा. भले ही वहां बीजेपी की दो सीटें हैं, लेकिन इतिहास देखें तो पता चलेगा की बीजेपी 2 को 20 में बदल सकती है. पहले भी उसने मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में ऐसा करनामा कर के दिखा दिया है. चूंकि केजरीवाल की लीडरशिप में पार्टी चुनाव हारी है तो हो सकता है कि पार्टी का संयोजक यानी अध्यक्ष बदल दिया जाए. ये भी हो सकता है कि केजरीवाल की मर्जी से मनीष सिसोदिया जैसे काम करने वाले नेता या संजय सिंह या सौरभ भारद्वाज जैसे मुखर नेता को संयोजक बना दिया जाए. पंजाब के बाद AAP लीडरशिप के सामने गुजरात में भरोसा जमाए रखना बड़ा चैलेंज होगा. वहां पार्टी बढ़ रही है. पिछले बार गुजरात विधानसभा चुनाव में आप को 5 सीटें मिली थीं. और वह 35 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी. लेकिन अब आगे क्या कुछ होगा यह देखना दिलचस्प होगा |
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