हिंदू सम्मेलन: उद्देश्य एकता या वैचारिक प्रभाव ?
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Special Correspondents
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) द्वारा देशभर में हिंदू सम्मेलनों के आयोजन और घर-घर जाकर संपर्क अभियान की घोषणा ने सामाजिक-सांस्कृतिक हलकों में नई चर्चाओं को जन्म दिया है। संघ का दावा है कि यह पहल हिंदू समाज में संगठन, सांस्कृतिक जागरूकता और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए की जा रही है। परंतु यह प्रयास केवल संस्कृति तक सीमित है या इसके पीछे कोई व्यापक वैचारिक विस्तार की योजना है, इस पर चर्चा आवश्यक है।.यह अभियान ऐसे समय में सामने आया है जब समाज में जातीय तनाव, धार्मिक असहिष्णुता और सामाजिक विभाजन की प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं। ऐसे में एकजुटता की बात स्वागत योग्य है, लेकिन उसे संकीर्ण वैचारिक खांचे में ढालने का प्रयास सामाजिक संतुलन के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
संवाद की परिपक्वता आवश्यक
RSS के स्वयंसेवकों द्वारा घर-घर जाकर लोगों से संपर्क करना एक बड़ी और संगठित योजना है। यदि यह संवाद वास्तविक अर्थों में लोगों की समस्याओं को सुनने, उन्हें सांस्कृतिक चेतना से जोड़ने और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने का माध्यम बनता है, तो यह सराहनीय कदम होगा।किन्तु यदि यह संवाद केवल एक दिशा में चलता है, जिसमें लोगों से ज़्यादा ‘बताया’ जाए और कम ‘सुना’ जाए, तो यह प्रचार बन जाता है – संवाद नहीं।
व्यापकता की कसौटी
हिंदू सम्मेलन को शहरों, कस्बों, गांवों तक ले जाने की योजना एक बड़ा संगठनात्मक उपक्रम है। इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या यह विविध हिंदू समाज – जिसमें अलग-अलग जातियाँ, भाषाएँ, और परंपराएँ हैं – को समान रूप से स्थान देता है या नहीं। कोई भी संगठन तभी तक प्रासंगिक होता है जब वह समावेशी रहे।
राजनीति से परे?
हालाँकि संघ स्वयं को गैर-राजनीतिक संस्था बताता है, परंतु उसका प्रभाव एक राजनीतिक दल विशेष पर स्पष्ट देखा जा सकता है। ऐसे में इस अभियान को पूरी तरह गैर-राजनीतिक बताना वस्तुस्थिति से कुछ दूरी बनाए रखना होगा। जब सामाजिक आयोजन चुनावी समय के करीब हों, तो उनके निहितार्थ भी राजनीतिक हो जाते हैं।हिंदू सम्मेलन एक बड़ा प्रयास है जो यदि समावेश, सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक चेतना की ओर बढ़े, तो यह राष्ट्रहित में होगा। परंतु यदि यह आयोजन केवल वैचारिक प्रभाव विस्तार का साधन बनता है, तो यह देश की सांस्कृतिक विविधता को क्षति पहुँचा सकता है।भारत की आत्मा उसकी बहुलता में बसती है। हर ऐसा प्रयास जो विविधता को जोड़ने का कार्य करे, प्रशंसनीय है; और हर वह कोशिश जो किसी एक विचारधारा को श्रेष्ठ मानकर दूसरों को हाशिए पर डाले, उसे विवेक से चुनौती दी जानी चाहिए।
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