महर्षि के नाम पर माफियागिरी : नोएडा के बीचोंबीच ये लोग डकार गए अरबों की जमीन, जानिए क्या है पूरा धंधा
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Mohammad Siraj
महर्षि के नाम पर माफियागिरी : नोएडा के बीचोंबीच ये लोग डकार गए अरबों की जमीन, जानिए क्या है पूरा धंधा
नोएडा : नोएडा शहर लाखों लोगों के लिए सपनों की नगरी है। उत्तर प्रदेश की ‘शो विंडो’ कहीं जाने वाले इस शहर में एक अदद आशियाना बनाने के लिए आम आदमी पापड़ बेलता है। हर किसी की इच्छा इस सुविधा संपन्न शहर में अपने बच्चों सिर पर एक छोटी सी छत हासिल करने की है। सैकड़ों-हज़ारों मील दूर से आए प्रवासियों की इसी हसरत का नाजायज फ़ायदा इस शहर में भूमाफ़िया, रसूखदार और राजनितिक रूप से ताकतवर लोग उठा रहे हैं। इन लोगों ने योग, धर्म, दर्शन और शिक्षा केंद्रों को भी अपनी काली कमाई का अड्डा बना रखा है। जो महर्षि महेश योगी की धार्मिक संपत्तियों को खुलेआम बाज़ार में बेच रहा है। इतना ही नहीं, इस गैंग ने नोएडा शहर को भारी नुक़सान पहुंचाया है। सरकारी ख़ज़ाने को दोनों हाथों से लूटा है। इस समाचार श्रृंखला के जरिए हम उन तमाम चेहरों से पर्दा उठाएंगे, जिन्होंने महर्षि महेश योगी की सार्वजनिक संपत्तियों पर बलात कब्जा कर रखा है। उनके ट्रस्टों और सामाजिक संगठनों को निजी मलकियत बना लिया है। सनातन संस्कृति, योग, दर्शन और वेदांत को पूरी दुनिया में ले जाने वाले महर्षि महेश योगी के नाम पर माफियागिरी चल रही है।
कौन थे महर्षि महेश योगी
सबसे पहले आप यह जान लीजिए कि आखिर महर्षि महेश योगी कौन थे? महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ के राजिम शहर के पास पांडुका गांव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनका मूल नाम महेश प्रसाद वर्मा था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक की पढ़ाई की। इसके बाद कुछ वर्ष नौकरी की। फिर वह ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के सानिध्य में आ गए। महर्षि महेश योगी ने शंकराचार्य की मौजूदगी में रामेश्वरम में 10 हजार बाल ब्रह्मचारियों को आध्यात्मिक योग और साधना की दीक्षा दी थी। हिमालय क्षेत्र में दो वर्ष का मौन व्रत करने के बाद 1955 से उन्होने ट्रेसडेंशल डीप मेडिटेशन (बाद में इसका नाम बदलकर ट्रेसडेंशल मेडिटेशन यानि टीएम टेक्निक) की शिक्षा देना आरम्भ किया। उन्होंने 1957 में टीएम आन्दोलन आरम्भ किया और इसके लिये विश्व के विभिन्न भागों का भ्रमण किया। महर्षि महेश योगी के आंदोलन ने उस समय जोर पकड़ा जब रॉक ग्रुप ‘बीटल्स’ ने 1968 में उनके आश्रम का दौरा किया। इसके बाद गुरुजी का ट्रेसडेंशल मेडिटेशन अर्थात ‘भावातीत ध्यान’ पूरी पश्चिमी दुनिया में लोकप्रिय हो गया। उनके शिष्यों में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर आध्यात्मिक गुरु दीपक चोपड़ा तक शामिल रहे। इंग्लैंड, हॉलैंड, इटली और स्विजरलैंड में उनकी संस्था मुख्यालय स्थापित हो गए। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि महर्षि योगी ने एक मुद्रा की स्थापना की थी। महर्षि महेश योगी की मुद्रा ‘राम’ को नीदरलैंड में क़ानूनी मान्यता प्राप्त है। राम नाम की इस मुद्रा में चमकदार रंगों वाले एक, पांच और दस के नोट हैं। इस मुद्रा को महर्षि की संस्था ‘ग्लोबल कंट्री ऑफ वर्ल्ड पीस’ ने अक्टूबर 2002 में जारी किया था। डच सेंट्रल बैंक के अनुसार राम का उपयोग कानून का उल्लंघन नहीं है। अमेरिकी राज्य आइवा की ‘महर्षि वैदिक सिटी’ में भी राम का प्रचलन है। वैसे 35 अमेरिकी राज्यों में राम पर आधारित बॉन्डस चलते हैं। नीदरलैंड की डच दुकानों में एक राम के बदले दस यूरो मिल सकते हैं।
नोएडा से कैसे हुआ जुड़ाव
उत्तर प्रदेश सरकार ने आपातकाल के दौरान 1977 में नोएडा की स्थापना की। नोएडा भविष्य का शहर बनने वाला था। उसी वक्त महर्षि योगी पूरी दुनिया में सक्रिय थे और उनका शानदार दौर चल रहा था। महर्षि महेश योगी के 32 ट्रस्टों और सोसायटियों ने पांच गांवों हाजीपुर, सलारपुर, भंगेल, बरोला और गेझा में लगभग 650 एकड़ भूमि खरीदी थी। इन सारी संस्थाओं ने यह जमीन वर्ष 1981 से 1987 तक खरीदी। चारदीवारी और दरवाजों वाला यह परिसर महर्षि आश्रम के नाम से मशहूर हो गया। गेट और चारदीवारी वाले परिसर में 335 एकड़ भूमि है। आश्रम ने ग्राम हाजीपुर में लगभग 128.54 एकड़ भूमि खरीदी थी। इसी दौरान नोएडा प्राधिकरण ने इन सारे गांवों में भूमि अधिग्रहण शुरू कर दिया था।
हाजीपुर गांव में विवाद शुरू हुआ
महर्षि महेश योगी आश्रम ने हाजीपुर गांव में 128.54 एकड़ जमीन थी। इसमें से विभिन्न 9 ट्रस्टों और सोसायटी ने 43.91 एकड़ भूमि में खरीदी थी। बाकी 84.63 एकड़ जमीन एक सोसायटी के नाम में खरीदी गई है। हाजीपुर गांव की जमीन को नोएडा प्राधिकरण अधिग्रहीत करना चाहता था। लिहाजा, आश्रम और प्राधिकरण के बीच विवाद शुरू हो गया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 05 जनवरी 2018 को एक आदेश दिया। जिसमें कहा गया कि 9 ट्रस्टों और सोसायटी की 43.91 एकड़ भूमि से जुड़े मामले को राज्य सरकार के 30 जनवरी 2015 के शासनादेश के मुताबिक सुलझा लें। उस आदेश में आश्रम और नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों की संयुक्त टीम का गठन किया गया था। शेष 84.63 एकड़ भूमि एक सोसायटी ने खरीदी है, लिहाजा उस पर उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम लागू होता है। इसी आधार पर गाजियाबाद के कलेक्टर ने 4 जुलाई 1987 को यह भूमि राज्य सरकार में निहित करने का आदेश दे दिया। इस जमीन के राजस्व अभिलेखों में राज्य सरकार का नाम दर्ज कर दिया। हाजीपुर गांव में कुल मिलाकर 43.91 एकड़ भूमि आश्रम के भौतिक कब्जे में है। ट्रस्ट ने अपर आयुक्त के न्यायालय में अपील की। आयुक्त ने 5 अगस्त 2008 को कलेक्टर के आदेश को रद्द कर दिया। मामले को नए सिरे से तय करने के लिए गौतमबुद्ध नगर के कलेक्टर को वापस भेज दिया। दरअसल, 1987 में नोएडा गाजियाबाद जिले का हिस्सा था। जबकि, वर्ष 2008 में आयुक्त का आदेश आने से पहले गौतमबुद्ध नगर जिला बन चुका था।
फिर मामला आयुक्त की कोर्ट में पहुंचा
गौतमबुद्ध नगर एडीएम (न्यायिक) ने इस मामले में सुनवाई की। एडीएम ने 9 जून 2015 को फैसला सुनाया। जमीन को राज्य सरकार की घोषित किया। यह आदेश जमीन के राजस्व अभिलेखों में दर्ज है। इसके बाद ट्रस्ट ने फिर आयुक्त न्यायालय में दस्तक दी। पहले तत्कालीन अपर आयुक्त रजनीश राय ने मामले में सुनवाई की। अब सुनवाई मेरठ की आयुक्त सेल्वा कुमारी जे की अदालत में चल रही है। महर्षि योगी आश्रम को संचालित करने वाले ट्रस्ट ने अदालत में तर्क दिया है कि “शहरी भूमि (सीमा और विनियमन) अधिनियम 1976” की धारा 19 (4), (5), (6) और (7) के तहत आने वाली भूमि पर उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम लागू नहीं होता है। अदालत ने यथास्थिति का आदेश दे रखा है।
फिर जमीन क्यों बेच रहे हैं?
यहां तक कहानी में कोई परेशानी नहीं है। परेशानी तब शुरू हुई जब अदालत के स्थागनादेश का नाजायज फ़ायदा उठाया गया। स्टे ऑर्डर की आड़ में नोएडा अथॉरिटी तो भूमि अधिग्रहण से रुक गई, लेकिन दूसरी ओर ट्रस्ट की इस ज़मीन को बाज़ार में खुलेआम बेचा जाने लगा। अब तक महर्षि योगी आश्रम की ज़मीन पर सैकड़ों भूखंड बेचे जा चुके हैं। कई बड़ी-बड़ी इमारतें बना ली गई हैं। आश्रम की जमीन पर दिन-रात निर्माण कार्य चल रहे हैं। क़ानून के मुताबिक स्टे ऑर्डर तो दोनों पक्षों के लिए है। मतलब, प्राधिकरण अगर इस जमीन का अधिग्रहण नहीं कर सकता तो ट्रस्ट या सोसाइटी यह जमीन बेच भी नहीं सकते हैं। आश्रम की जमीन को बेचना और उस पर निर्माण करना पूरी तरह ग़ैर क़ानूनी है। इससे साफ जाहिर होता है कि एक तरफ आश्रम के ट्रस्ट प्राधिकरण को भूमि अधिग्रहण करने से रोकना चाहते हैं, लेकिन दूसरी तरफ ख़ुद इस जमीन को बेचकर अनियोजित निर्माण करवा रहे हैं। जिससे शहर का मास्टर प्लान गड़बड़ा गया है। यह सारी गतिविधियां आश्रम के ट्रस्टों में शामिल लोगों की नीयत पर सवाल खड़ा करती हैं।
इस समाचार श्रृंखला में हम कल आपको बताएंगे कि बाकी गांवों में आश्रम की जमीन की क्या स्थिति है? आश्रम से जुड़े ट्रस्ट और सोसायटी कैसे गर कानूनी धंधों में लिप्त हैं? इन ट्रस्ट और सोसायटी में बैठे लोग आखिर कैसे काबिज हुए? महर्षि महेश योगी के रिश्तेदारों ने कैसे बेशकीमती सार्वजानिक और सामाजिक संपत्तियों को ‘प्राइवेट प्रॉपर्टी’ बना लिया है? कैसे शहर का एक नेता और उसका भाई अपने रसूख का इस्तेमाल करके करोड़ों के वारे-न्यारे कर रहे हैं? कैसे ट्रस्टी और नेताओं ने भूमाफियाओं से गठजोड़ कर रखा है।
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