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सुशील मोदी के मंत्री नहीं बनने से ‘लालू एंड फैमली’ क्यों है खुश, पीछे की ये है पूरी कहानी

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सुशील मोदी के मंत्री नहीं बनने से ‘लालू एंड फैमली’ क्यों है खुश, पीछे की ये है पूरी कहानी

बड़ें उम्मीदों के बावजूद भाजपा के राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में जगह नहीं बना सके। वो इससे आगे निकल चुके हैं। लेकिन, अनुमान लगाइए कि उनके मंत्री ना बनने से कौन खुश है? ये है लालू प्रसाद यादव का राष्ट्रीय जनता दल (राजद)।

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अब इसके कारण ज्यादा दूर नहीं हैं। पूर्व उपमुख्यमंत्री राजनीतिक पहले नंबर के हमलावर रहे हैं। लालू के वंश की दूसरी पीढ़ी उनकी पार्टी की बागडोर संभाल चुकी है इसके बावजूद सुशील मोदी राजद अध्यक्ष और उनके परिवार के पूरे राजनीतिक करियर के दौरान लगातार आग उगलते रहे हैं। 1996 में 950 करोड़ रुपये के चारा घोटाले की सीबीआई जांच की मांग करने वाले पटना उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ताओं में से एक होने से लेकर लालू के बेटों, तेजस्वी प्रसाद यादव और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की भरमार करने के लिए लगातार 44 प्रेस कॉन्फ्रेंस करने तक, सुशील मोदी लगातार हमलावर रहे हैं। यहां तक कि तेजप्रताप यादव जब 2017 में नीतीश कुमार सरकार में मंत्री थे, सुशील मोदी यादव परिवार को घेरते रहे हैं।

ऐसे में हैरानी की बात ये है कि जब केंद्र में नई मंत्रिपरिषद की सूची में सुशील मोदी का नाम नहीं आया तो राजद अपनी खुशी को छुपा नहीं पाया। पार्टी के वरिष्ठ नेता भाई वीरेंद्र का कहना है कि सुशील लालू जी को हर चीज के लिए जिम्मेदार मानते हैं। वो तंज कसते हुए कहते हैं, ”मच्छर भी काट ले तो लालू जी का वो नाम लेते है।” वो कहते हैं, “कौन जानता है कि वो कहेंगे कि लालू जी ने नाम मंत्रियों की सूची से हटा दिया गया क्योंकि वो दिल्ली में हैं!”

राजद प्रवक्ता का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुशील को मंत्री पद इसलिए नहीं दिया क्योंकि वह विनाशकारी मानसिकता के हैं। सुशील मोदी ने वर्षों तक बिहार के विकास के लिए कुछ नहीं किया और पीएम मोदी जानते हैं कि केंद्र में मंत्री बनाए जाने पर राज्य में भाजपा का वोट प्रतिशत कम हो जाएगा।

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दरअसल, सुशील कुमार मोदी के नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में संभावित रूप से शामिल होने की खबरें तब से आ रही थीं जब उन्हें बिहार में नवंबर 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार के मंत्रालय में शामिल नहीं किया गया। तब भाजपा के शीर्ष नेताओं ने उपमुख्यमंत्री के रूप में दो राजनीतिक दिग्गजों तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को चुना था। उस वक्त ये कहा गया कि सुशील मोदी को राष्ट्रीय राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए केंद्र में भेजा जाएगा।

इसके बाद, जब लोजपा अध्यक्ष रामविलास पासवान के निधन के बाद उच्च सदन की एक सीट खाली हो गई तो उन्हें भाजपा द्वारा राज्यसभा भेजा गया। इसने इस विश्वास को और बल मिला कि मोदी के मंत्रालय में उन्हें शामिल किया जा सकता है। लेकिन, ऐसा न हो सका।

जो लोग नहीं जानते हैं उनके लिए, लालू और सुशील एक दिलचस्प इतिहास साझा करते हैं। 1970 के दशक की शुरुआत में जब लालू पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ (पीयूएसयू) के अध्यक्ष बने थे तब सुशील मोदी महासचिव थे। बाद में, वे दोनों छात्र नेताओं के रूप में जेपी आंदोलन में शामिल हुए, लेकिन दोनों ने अलग-अलग विचारधाराओं की शपथ ली। लालू समाजवादी विचारधारा में विश्वास करते थे और 1977 में जनता पार्टी के सांसद बने, जबकि आरएसएस के सदस्य सुशील मोदी एबीवीपी के माध्यम से भाजपा में शामिल हुए।

1990 के दशक में लालू के बिहार के मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने उन पर तीखे हमले किए। लालू के कारावास के दौरान भी सुशील मोदी उन पर खुलेआम जेल नियमावली का उल्लंघन करने का आरोप लगाते रहे।

ये भी माना जाता है कि सुशील मोदी ने लालू यादव के बेटों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों का ‘बेनकाब’  नीतीश कुमार को महागठबंधन से बाहर निकलने और 2017 में भाजपा के साथ फिर से सरकार बनाने के लिए किया था। माना जाता है कि सुशील ने इसे सुगम बनाने में पर्दे के पीछे से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वास्तव में, कई राजनीतिक टिप्पणीकारों का मानना है कि यह नीतीश के साथ उनके अच्छे तालमेल की वजह से वो अब भाजपा में चहेते हैं।

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