सम्पादकीय: नकली दवाएं
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Mohammad Siraj
सम्पादकीय: नकली दवाएं
निजामुद्दीन की तर्ज पर ही महाराष्ट्र में एक गैंग के फर्जीवाड़े का पता चला। कई जगहों पर कैम्प के जरिए फर्जी कोरोना टीका लगाकर लोगों से पैसे वसूले जा रहे हैं। यह सरकार की व्यवस्थाओं को आईना तो दिखाता ही है इंसानियत को भी अंगूठा दिखाया है।
अगर कोविड की आपदा सामने नहीं आती तो यह कल्पना भी नहीं थी कि ऐसे लोग आज भी हैं जो सैकड़ों लोगों को मौत की खाई में झोंककर पैसा कम रहे हैं। फर्जी टीका लगाया गया, अलग-अलग अस्पतालों के फर्जी टीका सर्टिफिकेट भी बांटे गए। जैसे टीका लगाने के बाद सरकार देती है। ये सबकुछ किसी दूर-दराज इलाके में नहीं बल्कि मुंबई – दिल्ली जैसे महानगरों में हो रहा है। हैरान करने वाली बात है कि सरकारी अमलों को बंदरबाट की भनक तक नहीं है अथवा वे चुप्पी मारे हैं। इन भयावह घटनाओं से जुड़ा सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या कालाबाजारियों को काबू करने में हमारा क़ानून प्रभावी नहीं हैं? सिलसिलेवार घटनाओं से तो यही लग रहा है कि क़ानून का कोई खौफ ही नहीं, केस ही चलेगा ना? देख लेंगे वाली भावना काम कर रही है। ये नेटवर्क सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं है बल्कि इसके तार यूपी, मध्य प्रदेश बिहार और कई दूसरे राज्यों के शहरों तक फैले हुए हैं। समझ में नहीं आता कि फर्जीवाड़ा होता रहता है, जब लोग शिकायतें करते हैं तो सरकार सक्रिय होती है। एक दो पकड़ में आते हैं। इस तरह के गोरखधंधे में जो पकडे जाते हैं वो छोटी मुर्गियां हैं। ऑपरेट करने वाले सुरक्षित हैं। प्रशासन भी इन्हें प्रोटक्शन देता है, आगरा के मौत की मौकड्रिल करने वाले अस्पताल को जांच के बाद प्रशासन की क्लीन चिट मिलना इसी का नतीजा है। इसी वजह से कालाबाजार कुछ दिन के सन्नाटे के बाद फिर उठ खड़ा हो जाता है। हो सकता है ये बड़े स्तर की मिलीभगत हो जो आपदा में अवसर को बदलते हैं।
हकीकत में ऐसे मामले बड़े पैमाने पर लोगों की हत्या जैसी कोशिश ही हैं, बल्कि हत्या क्यों कहा जाए इसे, ये तो सीधे-सीधे नरसंहार की कोशिश है। सरकार को इस मामले में अधिक गंभीर रुख दिखाना चाहिए और ऐसे अपराधियों को प्रोटक्शन देने वाले लोगों पर भी कड़ा रुख दिखाना चाहिए। हमारी व्यवस्थाओं की पोल तो कोविड ने खोल ही दी पर इंसानियत का जज्बा तो बचाकर रखना होगा।
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