14/05/2021

अवध सूत्र

Latest Online Breaking News

अक्षय तृतीया : लॉकडाउन का कुम्हारों पर दोहरी मार, लकड़ी और गोबर के दाम ने बढ़ाए पुतरा-पुतरियों के भाव

1 min read
😊 Please Share This News 😊

अक्षय तृतीया : लॉकडाउन का कुम्हारों पर दोहरी मार, लकड़ी और गोबर के दाम ने बढ़ाए पुतरा-पुतरियों के भाव 

मिट्टी के गुड्डे-गुड़ियों के दाम इस वर्ष 20 से 30 फीसदी तक बढ़ा दिए गए हैं। राजधानी रायपुर मे मिट्टी के गुड्डे-गुड़ियों के दाम इस वर्ष 20 से 30 फीसदी तक बढ़ा दिए गए हैं। इसका कारण लकड़ी और गोबर के दाम में हुई बढ़ोत्तरी है। पहले से महंगाई का सामना कर रहे कुम्हारों पर लॉकडाउन की दोहरी मार पड़ी है। बीते वर्ष भी लॉकडाउन के कारण अक्षय तृतीया पर व्यापार बेहद प्रभावित रहा था। इस वर्ष भी इसी तरह की परिस्थितियां निर्मित हो गई हैं। अक्षय तृतीया पर मिट्टी के गुड्डे-गुड़ियाें के विवाह कराने की परंपरा रही है। बड़े पैमाने पर इसकी बिक्री भी हर साल होती है। कोरोना संक्रमण के कारण बीते दो सालों से इसका बाजार ठप पड़ा हुआ है। हालत यह है कि लागत भी नहीं निकल पा रही है। पिछले साल हुए नुकसान को देखते हुए इस बार अधिकतर कुम्हारों ने सीमित संख्या में ही मिट्टी के पुतले तैयार किए थे। इसके बाद भी इनकी पूरी बिक्री नहीं हो सकी। शहर की तुलना में समीपस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी बिक्री अच्छी है। राजधानी से लगे हुए ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष नुकसान कुम्हारों को नहीं उठाना पड़ा है। पहले गोबर मुफ्त था, अब इसकी भी कीमत कालीबाड़ी में मिट्टी के बर्तन, मटके, गमले सहित कई चीजों का व्यवसाय करने वाली निर्मला के अनुसार इस बार बिक्री बहुत कम हो रही है। खर्चा भी नहीं निकल पा रहा है। गुड्डे-गुड़िया की जोड़े की कीमत 50 से 100 रुपए तक आकार और डिजाइन के अनुसार है। लकड़ी प्रतिकिलो 3 से 4 रुपए महंगी हो गई है। अब गोबर खरीदी भी होने लगी है इसलिए इसके भी अधिक दाम चुकाने पड़ रहे हैं। बिक्री इतनी नहीं है कि लागत निकल सके। वे अब सरकार से मदद की उम्मीद लगाए बैठे हैं। पूजा के नाम से ही बिक्री इस व्यवसाय से जुड़ी रामकली ठाकुर बताती हैं कि पहले एक दिन में 20 से 30 जाेड़े बिक जाते थे। अब मुश्किल से एक दिन में 5 से 7 जाेड़े ही बिक रहे हैं। जो थोड़ी-बहुत बिक्री हुई है वह आज होने वाली पूजा के नाम से ही हुई है। मांग में कमी को देखते हुए वे खुद निर्माण करने के स्थान पर दूसरे कुम्हारों से इसकी खरीदी कर शहर में बिक्री कर रहे हैं। इसमें भी कोई विशेष मुनाफा नहीं हुआ है। बीते वर्ष भी इसी तरह के हालात थे।

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें 

स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे

Donate Now

[responsive-slider id=1466]
error: Content is protected !!