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नया साल- समय की देहरी पर खड़ा इंसान

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Written by
Rishabh Rai

समय कभी रुकता नहीं, लेकिन हर नया साल हमें एक क्षण के लिए उसकी देहरी पर खड़ा कर देता है। पीछे मुड़कर देखने और आगे झाँकने का यही वह बिंदु है, जहाँ इंसान अपने जीवन, समाज और सपनों का हिसाब करता है। नया साल केवल कैलेंडर का बदला हुआ अंक नहीं, बल्कि चेतना का नया सूर्योदय है।

बीता हुआ साल स्मृतियों का एक पिटारा बनकर हमारे साथ चलता है-कुछ यादें मुस्कान बन जाती हैं, कुछ टीस बनकर रह जाती हैं। लेकिन समय का सौंदर्य यही है कि वह बोझ नहीं देता, केवल सीख देता है। नया साल हमें यह अवसर देता है कि हम उन सीखों को दीपक की लौ बनाकर आगे की राह रोशन करें।

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आज की दुनिया शोर से भरी है- सूचनाओं का शोर, विचारों का टकराव, और आकांक्षाओं की भीड़। ऐसे में नया साल हमें मौन की अहमियत समझाता है। वह मौन, जिसमें आत्मा अपनी आवाज़ सुन पाती है। शायद इस साल हमें तेज़ दौड़ने से पहले यह पूछना चाहिए—क्या हम सही दिशा में जा रहे हैं?

नया साल उम्मीद का त्योहार है, लेकिन उम्मीद तभी जीवित रहती है जब कर्म उसका साथ दें। समाज तभी मजबूत होता है जब व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी पहचानता है। एक बेहतर नागरिक, एक संवेदनशील इंसान और एक ईमानदार सोच—यही नए साल के सबसे बड़े संकल्प हो सकते हैं।

यह साल हमसे यह भी मांग करता है कि हम बाँटना सीखें- सिर्फ खुशियाँ नहीं, जिम्मेदारियाँ भी। दुख में साथ देना, कमजोर की आवाज़ बनना और असहमति में भी सम्मान बनाए रखना- यही सभ्यता की पहचान है।

नया साल कोई जादुई छड़ी नहीं, जो सब कुछ बदल दे। लेकिन यह वह काग़ज़ ज़रूर है, जिस पर हम अपने इरादों की नई इबारत लिख सकते हैं।

आइए, इस साल शब्द कम और अर्थ ज्यादा हों।

दिखावा कम और संवेदना ज्यादा हो।

और सबसे ज़रूरी-इंसान होना फिर से सीखें।

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