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सुप्रीम कोर्ट में मौखिक बहस पर समय सीमा, त्वरित न्याय की दिशा में बड़ा कदम

सुप्रीम कोर्ट में मौखिक बहस पर समय सीमा
सुप्रीम कोर्ट में मौखिक बहस पर समय सीमा
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Written by
Rishabh Rai

नई दिल्ली। नए वर्ष की शुरुआत के साथ ही सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली में एक अहम बदलाव लागू किया गया है। अब शीर्ष अदालत में वकीलों की मौखिक बहस निर्धारित समय सीमा के भीतर ही होगी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी नए सर्कुलर के तहत यह व्यवस्था तत्काल प्रभाव से लागू कर दी गई है। इसका उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाना, कोर्ट प्रबंधन को सुदृढ़ करना और लंबित मामलों का शीघ्र निस्तारण सुनिश्चित करना है।

नए नियमों के अनुसार, वकीलों को सुनवाई से एक दिन पहले अपनी मौखिक बहस की टाइमलाइन दाखिल करनी होगी। प्रत्येक पक्ष को अदालत द्वारा निर्धारित समय सीमा में ही अपनी दलीलें प्रस्तुत करनी होंगी। मौखिक बहस की यह रूपरेखा सुप्रीम कोर्ट के ऑनलाइन पोर्टल पर अपलोड की जाएगी। इसके साथ ही वकीलों को कम से कम तीन दिन पहले अपनी लिखित दलीलें भी दाखिल करनी होंगी, जो अधिकतम पांच पृष्ठों तक सीमित होंगी। ये लिखित दलीलें दूसरे पक्ष को उपलब्ध कराना भी अनिवार्य होगा।

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सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान में 92,010 मामले लंबित हैं, जिनमें 72,658 दीवानी और 19,352 आपराधिक मामले शामिल हैं। फिलहाल 219 मामलों की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ और 27 मामलों की सुनवाई पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ कर रही है। अदालत का मानना है कि समय सीमा तय होने से सुनवाई अधिक केंद्रित होगी और मामलों का निपटारा तेज गति से हो सकेगा।

अब तक सुप्रीम कोर्ट में सबसे लंबी मौखिक बहस ‘केशवानंद भारती’ मामले में हुई थी, जो 68 दिनों तक चली। इसके बाद राम जन्मभूमि मामले की सुनवाई 40 दिनों तक चली थी। नए नियमों के लागू होने के बाद ऐसे लंबे मामलों में भी समय प्रबंधन को लेकर सख्ती बरती जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट के सर्कुलर में यह भी उल्लेख किया गया है कि इस वर्ष मामलों के निस्तारण की दर 87 प्रतिशत रही है। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने पदभार संभालते ही स्पष्ट किया था कि लंबित मामलों का शीघ्र निपटारा उनकी प्राथमिकता है। नए समय-सीमा नियमों से न्याय प्रक्रिया में गति आने और आम नागरिकों को समय पर न्याय मिलने की उम्मीद की जा रही है।

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