
इस महीने, पाकिस्तान में पारित हुए 27वें संवैधानिक संशोधन के बाद सेना प्रमुख असिम मुनीर को वो शक्तियां मिल गई हैं, जिनकी व्यापक आलोचना हो रही है- और अब संयुक्त राष्ट्र ने इस पर अपनी चिंता जाहिर की है। संशोधन के तहत एक नया Federal Constitutional Court (FCC) स्थापित किया गया है, जिसको संवैधानिक मामलों की सुनवाई का अधिकार मिला है, जबकि पहले यह अधिकार हाइकोर्ट के बजाय Supreme Court of Pakistan (सुप्रीम कोर्ट) के पास था। अब सुप्रीम कोर्ट का दायरा सिर्फ नागरिक और आपराधिक मामलों तक सीमित हो गया है। अदालतों के न्यायाधीशों की नियुक्ति, स्थानांतरण और पदोन्नति अब सरकार व राष्ट्रपति की सहमति पर निर्भर होगी। साथ ही, संशोधन में राष्ट्रपति, मिलिट्री-चीफ, वायुसेना व नौसेना के प्रमुखों को आजीवन कानूनी सुरक्षा देने का प्रावधान है। इसका मतलब है कि यदि वे किसी प्रकार का अपराध करते भी हैं, तो उन पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकेगा।
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रमुख ने कहा कि.. इस तरह के “जल्दीबाज़ी में पास किए गए” संवैधानिक बदलाव न्यायपालिका की स्वतंत्रता, सैन्य जवाबदेही और कानून के शासन (rule of law) के लिए “गंभीर खतरा” हैं। उन्होंने सरकार से इस निर्णय पर पुनर्विचार करने और व्यापक कानूनी व सामाजिक संवाद करने का आग्रह किया है। यह रूप में संवैधानिक बदलाव, असल में सेना को संवैधानिक अधिकार देकर, सेना-केंद्रित तानाशाही स्थापित करने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है। इससे पाकिस्तान में न्यायपालिका, लोकतंत्र और मानवाधिकारों की रक्षा मुश्किल हो जाएगी।







