
दिल्ली दंगा मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को एक अहम पहलू सामने आया, जब दिल्ली पुलिस ने अदालत के सामने कहा कि वर्तमान समय में पढ़े-लिखे आतंकी अनपढ़ अपराधियों की तुलना में कहीं अधिक खतरनाक साबित हो रहे हैं। पुलिस ने कहा कि कई ऐसे आरोपी मिले हैं जो सरकारी खर्च पर उच्च शिक्षा हासिल कर डॉक्टर, इंजीनियर और प्रोफेशनल बने, लेकिन बाद में देश में हिंसा फैलाने और दंगों में शामिल पाए गए।
पुलिस ने कोर्ट में दलील दी कि पढ़े-लिखे दंगा आरोपी तकनीकी समझ और रणनीतिक ज्ञान के कारण अधिक जटिल तरीके से हिंसा को अंजाम देते हैं। कई मामलों में ये लोग सोशल मीडिया, एन्क्रिप्टेड चैट, डिजिटल प्लेटफॉर्म और इंटरनेट तकनीक का उपयोग कर भीड़ को भड़काने, अफवाह फैलाने और संगठित हमले की योजनाएं बनाने में शामिल होते हैं। पुलिस ने कहा कि यह वर्ग न केवल हिंसा में शामिल होता है बल्कि दंगों को दिशा देने की क्षमता भी रखता है।
दिल्ली पुलिस ने कहा कि दंगों के दौरान पकड़े गए कई आरोपी शिक्षा, जागरूकता और संसाधनों से संपन्न थे, फिर भी उन्होंने कानून-व्यवस्था को चुनौती देने और सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने वाली गतिविधियों में हिस्सा लिया। पुलिस ने कोर्ट के सामने तर्क दिया कि पढ़े-लिखे अपराधियों को सख्त सजा न मिलने से गलत संदेश जाएगा और देश में हिंसक घटनाओं को बढ़ावा मिल सकता है।कोर्ट ने भी इस पर गंभीर चिंता व्यक्त की कि उच्च शिक्षित युवाओं का अपराध और हिंसा में शामिल होना समाज के लिए खतरनाक संकेत है। कोर्ट ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य समाज को संवारना है, न कि अस्थिर करना, ऐसे में इस तरह के मामलों की गहन जांच आवश्यक है।
अदालत ने पुलिस से विस्तृत रिपोर्ट माँगी है और कहा कि मामले में तथ्यों के आधार पर कार्रवाई होगी। कोर्ट ने संकेत दिया कि यदि डिजिटल साक्ष्य और पुलिस की दलीलों में दम पाया गया, तो ऐसे मामलों में कठोर रुख अपनाया जाएगा। देश में यह टिप्पणी चर्चा का विषय बन गई है। सोशल मीडिया पर इस बयान को लेकर बहस छिड़ी हुई है—कुछ लोग इसे वास्तविक स्थिति का प्रतिबिंब मान रहे हैं तो कुछ इसे व्यापक समुदायों को बदनाम करने की कोशिश बता रहे हैं। मामले की अगली सुनवाई जल्द निर्धारित की जाएगी।






