
आज के आधुनिक दौर में त्वरित भोजन यानी अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड (UPF) हर शहर और गांव में घर-घर तक पहुंच गया है। इंस्टेंट नूडल्स, पिज़्ज़ा, पैक्ड स्नैक्स, एनर्जी ड्रिंक और चॉकलेट बार जैसी चीज़ें अब बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक की डाइट का हिस्सा बन चुकी हैं। लेकिन सुविधा के नाम पर खाया जा रहा यह भोजन धीरे-धीरे शरीर को बीमारियों की गिरफ्त में ले रहा है।
हेल्थ रिसर्च में पाया गया है कि UPF का सेवन सीधे तौर पर मोटापा, हाई कोलेस्ट्रॉल, हार्ट डिज़ीज़, कैंसर, स्ट्रोक और मानसिक तनाव जैसी गंभीर बीमारियों से जुड़ा हुआ है। कई शोधों में यह भी सामने आया है कि अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड खाने वालों में अकस्मात मृत्यु का खतरा 15–20 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि UPF में मौजूद हाई सोडियम, हाइड्रोजनेटेड ऑयल, केमिकल फ्लेवर्स, कलर्स और प्रिज़र्वेटिव्स शरीर में सूजन पैदा करते हैं। इससे इम्युनिटी कमजोर होती है और शरीर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है। खासकर ट्रांस फैट दिल की धमनियों को ब्लॉक कर देता है, जिससे युवा उम्र में भी हार्ट अटैक के मामले बढ़ रहे हैं।
गरीब और मध्यम वर्ग में UPF का उपयोग सबसे ज्यादा बढ़ा है क्योंकि यह सस्ता, स्वादिष्ट और आसानी से उपलब्ध है। लेकिन लंबे समय में यह परिवारों के स्वास्थ्य और आय दोनों पर भारी पड़ रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि कई मरीज रोजाना 60–70 प्रतिशत कैलोरी अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड से ले रहे हैं, जो बेहद खतरनाक स्थिति है।
बच्चों में UPF का खतरा सबसे अधिक है। यह न केवल मोटापा बढ़ाता है बल्कि हड्डियों के विकास, दांतों की सेहत और मानसिक स्थिरता पर भी असर डालता है। अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि UPF का अत्यधिक सेवन बच्चों में डिप्रेशन और एंग्जायटी के मामलों को बढ़ाता है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि बदलाव की शुरुआत घर से ही होनी चाहिए। माता-पिता को बच्चों को पैक्ड स्नैक्स की बजाय फल, सलाद और घर का ताजा भोजन देने की आदत डालनी चाहिए। वहीं सरकार को भी UPF उद्योग पर कठोर नियम, लेबलिंग मानक और बच्चों को लक्षित विज्ञापनों पर रोक लगाने की जरूरत है। कुल मिलाकर, अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड एक छिपा हुआ धीमा ज़हर है, जो धीरे-धीरे पूरे समाज के स्वास्थ्य को खतरनाक दिशा में ले जा रहा है। जागरूकता और सही खानपान ही इससे बचाव का एकमात्र उपाय है।





