
दिवाली केवल रोशनी और मिठाइयों का पर्व नहीं है, यह भारतीय संस्कृति की गहराई में रची-बसी आध्यात्मिकता का पर्व भी है। इस दिन माता लक्ष्मी के स्वागत के लिए घरों को दीपों से सजाया जाता है, स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है और विधिवत लक्ष्मी पूजन किया जाता है। परंतु एक प्रश्न जो कई बार उठता है — लक्ष्मी पूजन में शंख क्यों आवश्यक माना जाता है?
क्या यह केवल एक धार्मिक परंपरा है या इसके पीछे कोई गूढ़ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक तात्पर्य छिपा है?
शंख: केवल एक वाद्य यंत्र नहीं, एक दिव्य प्रतीक
हिंदू धर्म में शंख को अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली माना गया है। समुद्र मंथन की कथा में शंख को भी लक्ष्मी के साथ उत्पन्न हुआ माना जाता है। इसलिए, शंख और लक्ष्मी का संबंध केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी गहरा है।
लक्ष्मी पूजन में शंख को शामिल करना इस बात का सूचक है कि जहां शंख की ध्वनि होती है, वहां नकारात्मकता टिक नहीं सकती। शंख की आवाज़ वातावरण को शुद्ध करती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है — जो कि लक्ष्मी आगमन के लिए अनुकूल वातावरण बनाती है।
धार्मिक मान्यता और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
शास्त्रों में कहा गया है:
“शंखे संप्रणम्यते लक्ष्मीः, शंखे विष्णुः प्रतिष्ठितः।”
अर्थात्, शंख में लक्ष्मी का वास होता है और विष्णु भी उसमें प्रतिष्ठित होते हैं। दिवाली की रात को “महालक्ष्मी की रात्रि” कहा जाता है, जब लक्ष्मी देवी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और उन घरों में वास करती हैं जो स्वच्छ, शांत और श्रद्धा से भरे हों। शंख न केवल उस आध्यात्मिक ऊर्जा का निमंत्रण है, बल्कि नकारात्मक शक्तियों का निष्कासन भी करता है।
विज्ञान भी करता है पुष्टि
आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो शंख बजाने से निकलने वाली ध्वनि तरंगें वातावरण में कंपन उत्पन्न करती हैं जो हवा में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया और विषाणुओं को निष्क्रिय कर सकती हैं। यह घर के वातावरण को स्वच्छ और सकारात्मक बनाता है।
इसके अलावा, शंख फूंकने से शरीर में प्राणवायु का संचार होता है और फेफड़े मजबूत बनते हैं। यह शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है।
लक्ष्मी पूजन में शंख का उपयोग कैसे किया जाता है?
पूजा की शुरुआत में शंख को जल से भरकर अभिषेक किया जाता है।
पूजा के समय शंखनाद किया जाता है, जिससे दिव्य ऊर्जा की उपस्थिति महसूस होती है।
शंख से गंगाजल छिड़ककर पूरे घर को शुद्ध किया जाता है।
यह प्रक्रिया केवल परंपरा नहीं, बल्कि एक गहन मानसिक और आत्मिक जागरण का मार्ग है।
नवदुर्गा से लेकर नवधन की ओर
जहां नवरात्रि शक्ति की उपासना का समय है, वहीं दिवाली धन, वैभव और समृद्धि की आराधना का पर्व है। शंख इन दोनों ही धाराओं का सेतु है — यह शक्ति का प्रतीक है और समृद्धि का आह्वान भी। इसलिए, लक्ष्मी पूजन में शंख की उपस्थिति केवल एक धार्मिक ‘रीति’ नहीं, बल्कि आस्था, ऊर्जा और भारतीय संस्कृति की वैज्ञानिकता का प्रमाण है।