
नई दिल्ली, 9 अगस्त
अगस्त का महीना है और देशभर में “अगस्त क्रांति” की गूंज है। इसी माहौल में कांग्रेस भी अपने राजनीतिक मिशन पर पूरी तरह सक्रिय हो गई है। पार्टी नेता राहुल गांधी अब खुलकर मोर्चा संभाल चुके हैं। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप से जुड़ी घटनाओं का हवाला देकर वह सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साध रहे हैं। इसके साथ ही चुनाव आयोग पर भी निष्पक्षता को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं।
‘चुनाव चोरी’ का आरोप, चुनाव आयोग पर हमला
राहुल गांधी लगातार यह आरोप लगा रहे हैं कि देश में चुनाव “चोरी” किए जा रहे हैं। वह इस बहाने न सिर्फ बीजेपी बल्कि चुनाव आयोग को भी कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। ट्रंप के बहाने भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए राहुल गांधी का कहना है कि लोकतंत्र के मूल्यों को कमजोर किया जा रहा है।
उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर रणनीति तैयार
इसी बीच, उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर कांग्रेस ने विपक्षी गठबंधन INDIA (इंडिया ब्लॉक) के साथ मिलकर एक बड़ा राजनीतिक दांव खेला है। सूत्रों के अनुसार, राहुल गांधी ने 7 अगस्त को विपक्षी दलों के साथ डिनर मीटिंग की, जिसमें साझा उम्मीदवार को लेकर सहमति बनी है। बैठक के बाद राहुल और अखिलेश यादव के बीच डील फाइनल हुई और उम्मीदवार के नाम की फाइल गठबंधन के अन्य नेताओं को भेज दी गई। अब लगभग पूरा इंडिया ब्लॉक इस नाम पर सहमत हो गया है।
दलित-ओबीसी कार्ड, यूपी-बिहार पर नजर
कांग्रेस की रणनीति साफ है — उपराष्ट्रपति पद के लिए दलित या ओबीसी समुदाय से आने वाले नेता को मैदान में उतारकर यूपी-बिहार के जातीय समीकरणों में सेंध लगाना। राहुल और अखिलेश की नजर 2025 के बिहार और 2027 के यूपी विधानसभा चुनावों पर है। दोनों राज्यों में दलित और ओबीसी वोटर्स निर्णायक भूमिका में हैं, इसलिए इसी वर्ग से उम्मीदवार को उतारने पर विचार हो रहा है।
क्षेत्रीय समीकरण: आंध्रप्रदेश और बिहार पर फोकस
कांग्रेस की रणनीति में आंध्रप्रदेश या बिहार से किसी वरिष्ठ नेता को उम्मीदवार बनाने का प्लान शामिल है। इसका मकसद बीजेपी के प्रमुख सहयोगियों—टीडीपी (चंद्रबाबू नायडू) और जेडीयू (नीतीश कुमार)—को असमंजस में डालना है। अगर उम्मीदवार आंध्रप्रदेश से होता है, तो वाईएसआर कांग्रेस (YSRCP) जैसे दल भी विपक्ष के साथ आ सकते हैं।
उधर, बिहार के उम्मीदवार के मामले में जेडीयू, लोजपा और आरएलएम जैसे सहयोगी दलों पर दबाव बन सकता है। कांग्रेस मानती है कि क्षेत्रीय और सामाजिक समीकरण के सहारे एनडीए में फूट डालने का अवसर इस चुनाव में बन सकता है।
आंकड़ों की बात करें तो एनडीए मजबूत
हालांकि, मौजूदा आंकड़ों के हिसाब से एनडीए की स्थिति मजबूत दिख रही है। दोनों सदनों को मिलाकर एनडीए के पास 418 सांसद हैं, जबकि उपराष्ट्रपति पद पर जीत के लिए 392 सांसदों का समर्थन जरूरी है। इसके अलावा बीजेपी को राज्यसभा के 7 मनोनीत सांसदों और 3 निर्दलीयों में से 2 का समर्थन मिल सकता है। लोकसभा में अकाली दल समेत अन्य छोटे दलों और निर्दलीयों का भी रुख बीजेपी के पक्ष में माना जा रहा है।
कांग्रेस का मकसद: विपक्षी एकता और एनडीए में भ्रम
कांग्रेस इस चुनाव को सिर्फ एक संवैधानिक पद की लड़ाई नहीं, बल्कि विपक्षी एकता और शक्ति प्रदर्शन का जरिया मान रही है। पार्टी रणनीतिकारों का मानना है कि भले ही जीत की संभावना कम हो, लेकिन यदि एक भी एनडीए सहयोगी विपक्ष के साथ आता है, तो राजग में फूट का संदेश जाएगा और 2026-27 के चुनावी रण के लिए विपक्षी मनोबल को मजबूती मिलेगी।