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अपने अहंकार में लोगों पर मुकदमे दर्ज न करें सरकार, आम नागरिकों को सरकार के कार्यों का विरोध करने का पूरा अधिकार – कोर्ट

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नागरिक को सरकार और उसके प्राधिकारीयों द्वारा उठाए गए कदमों या उपायों की आलोचना करने या टिप्पणी करने का संपूर्ण अधिकार है। यह अधिकार तब तक है जब तक कि वह लोगों को सरकार के खिलाफ हिंसा करने या सार्वजनिक अव्यवस्था फैलाने के इरादे से नहीं उकसाता है। शीर्ष अदालत ने इस टिप्पणी के साथ वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ पर हिमांचल प्रदेश में दर्ज राजद्रोह के मुकदमे को निरस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा सभी पत्रकार शीर्ष अदालत द्वारा केदारनाथ सिंह मामले में वर्ष 1962 में दिए फैसले के तहत संरक्षित हैं। इस फैसले में राजद्रोह कानून का दायरा तय किया था। बता दें कि पत्रकार विनोद दुआ पर पिछले साल लॉकडाउन के समय प्रवासी मजदूरों के पलायन पर अपने यूट्यूब चैनल के कार्यक्रम में सरकार की आलोचना पर राष्ट्रद्रोह का केस दर्ज हुआ था। जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस विनीत सरन की पीठ ने कहा, जब शब्दों या अभिव्यक्ति ओं में सार्वजनिक व्यवस्था या कानून व्यवस्था की गड़बड़ी पैदा करने की हानिकारक प्रवृत्ति या इरादा होता है, तभी भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए के तहत मामला बनता है। पीठ ने कहा, दुआ के बयानों को अधिक से अधिक सरकार और उसके प्राधिकारी यों के कार्यों के प्रति अस्वीकृति की की अभिव्यक्ति कहा जा सकता है। ताकि मौजूदा हालात को जल्दी और कुशलता से निपटने के लिए प्रेरित किया जा सके। अपने आदेश में पीठ ने कहा, विनोद दुआ के खिलाफ राजद्रोह अभियोजन चलाना अन्याय पूर्ण होगा। पीठ ने कहा दुआ के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता ऐसे में अभियोग चलाना बोलने दो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा।

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