5G ट्रायल पर वो जानकारी जो आपको कहीं नहीं मिलेगी
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Mohammad Siraj
5G ट्रायल पर वो जानकारी जो आपको
कहीं नहीं मिलेगी
भारत में फास्ट इंटरनेट के दीवानों का सपना, सच होने के एक कदम और नजदीक पहुंच गया है. भारत में 5G इंटरनेट तकनीक का ट्रायल शुरू करने की परमीशन सरकार ने दे दी है. इसकी मांग लंबे वक्त से टेलीकॉम कंपनियां कर रही थीं. बता दें कि 2 साल पहले सरकार ने दिल्ली में आयोजित इंडियन मोबाइल कांग्रेस के दौरान सिर्फ एक परिसर (निर्धारित क्षेत्र) के भीतर इसके ट्रायल की परमीशन दी थी. लेकिन अब यह ट्रायल दूर गांव से लेकर शहरों तक सब जगह होगा. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर 5G क्या है? और इससे हमारी जिंदगी पर क्या फर्क पड़ने वाला है? इंटरनेट की दुनिया इससे कैसे बदलने वाली है? क्या यह सेहत के लिए नुकसानदायक है? ऐसे ही कई सवालों के जवाब हमने तलाशे हैं, जो कुछ इस तरह से हैं।
5G के ट्रायल क्यों हो रहे हैं
हाई स्पीड इंटरनेट की 5G तकनीक के ट्रायल की मंजूरी सरकार ने दे दी है. दूरसंचार मंत्रायल के सचिव अंशु प्रकाश ने को बताया कि इस तरह के ट्रायल बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. इनकी वजह से 5G ऑक्शन और उसकी सर्विस शुरू करने में जो गैप होता है, वह घट जाता है. पहले स्पेक्ट्रम ऑक्शन के बाद ही ट्रायल होते थे लेकिन इस बार हम पहले कर रहे हैं. इससे 5G आम लोगों तक जल्दी पहुंचेगा।
कहां होंगे 5G के ट्रायल?
हर टेलीकॉम कंपनी को 5G का ट्रायल हर तरह के इलाके में करना होगा. मतलब हर कंपनी को गांव, कस्बे और शहरों के स्तर पर 5G टेक्नोलॉजी का ट्रायल करना होगा. इसे सिर्फ शहरी जगहों तक ही सीमित नहीं रखा गया है. इसके लिए कंपनिया अपना तकनीकी सेटअप ट्रायल वाली जगहों पर करेंगी. देशभर में 5G उपकरण लगाने के लिए दो महीने का समय दिया गया है. संचार मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि दूरसंचार कंपनियों को 5G के ट्रायल के लिए अभी 6 महीने का वक्त दिया गया है. ट्रायल के वक्त भी इसे कमर्शियल सर्विस की तरह शुरू किया जाएगा. हालांकि इसका एक्सेस सीमित 5G डिवाइसेज तक ही होगा. 5G से जुड़ा सारा डेटा भारत में स्थित किसी सर्वर में स्टोर किया जाएगा.
कौन सी कंपनियां कर रही हैं 5G का ट्रायल?
देश में 5G के ट्रायल के लिए भारती एयरटेल, रिलायंस जियो, वोडाफोन आइडिया और एमटीएनएल ने आवेदन किया है ये टेलीकॉम कंपनियां ही ट्रायल में हिस्सा लेंगी. इन कंपनियों ने 5G उपकरण के लिए एरिक्सन, नोकिया, सैमसंग और सी-डॉट जैसी कंपनियों के साथ टाई-अप किया है।
क्या कोई चाइनीज़ कंपनी भी इसमें शामिल है?
चीन के साथ खराब रिश्तों के चलते इस ट्रायल से चीन की दो बड़ी कंपनियां दूर हैं. एक कंपनी का नाम है हुवावेई (Huawei) और दूसरी का ज़ीटीई (ZTE) ये चीन ही नहीं, दुनिया में टेलीकॉम उपकरण बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनियां हैं. इन कंपनियों के साथ किसी टेलीकॉम कंपनी ने ट्रायल के लिए अनुबंध नहीं किया है. माना जा रहा है कि सरकार चीन को इस ट्रायल से दूर रखना चाहती है, इसलिए कंपनियों ने ऐसा कदम उठाया है. हालांकि इंडियन एक्सप्रेस ने टेलीकॉम डिपार्टमेंट के अधिकारी के हवाले से लिखा है कि किसी टेलीकॉम कंपनी ने हुवावेई और ज़ीटीई के इक्वीपमेंट इस्तेमाल करने की इच्छा नहीं जताई. ऐसे में मना करने का सवाल नहीं है।
5G आने से स्पीड में ऐसा क्या फर्क पड़ जाएगा
एक शब्द में कहें तो 5G मतलब तेज़ इंटरनेट स्पीड. 4G के मुकाबले क़रीब 100 गुना तेज़.और जब वायरलेस इंटरनेट तेज़ हो जाएगा, तो चीज़ें सिर्फ़ यूट्यूब या नेटफ़्लिक्स पर वीडियो देखने तक ही सीमित नहीं रहेंगी. ऑटोनॉमस व्हिकल्स, वर्चुअल रियल्टी और इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स जैसी चीज़ें भी आम होने लगेंगी. मतलब कि अपने आप चलने वाली कार, स्मार्ट होम आदि जैसी चीज़ें भी आसान हो जाएंगी. ये सभी तकनीकें तैयार हुई पड़ी हैं या अपने अंतिम चरण में हैं।
हमें भले ही 4G तकनीक भी तेज लगती हो लेकिन तकनीकी तौर पर वह उतनी फास्ट है नहीं. कभी-कभी आपने भी महसूस किया होगा कि वीडियो कॉल पर बात करते हुए आवाज और वीडियो का तारतम्य बिगड़ जाता है. यह इंटरनेट की लीटेंसी या देर से रिएक्ट करने की वजह से होता है. सोच कर देखें अगर ऐसे इंटरनेट के जरिए किसी कार को कमांड दिया जा रहा हो तो क्या हो? कमांड में कुछ सेकेंड की देरी भी जान खतरे में डाल सकती है. ऐसे ही कई काम हैं जिसके लिए बेहतर और तेज इंटरनेट चाहिए. ये सपना 5G साकार करेगा।
5G के लिए अलग से टावर लगेंगे या 4G वालों से ही काम चल जाएगा
सुनने में भले ही 5G अब अगले स्टेज की तकनीक लगती है, लेकिन इसके साथ बहुत तामझाम जुड़ा हुआ है. इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि टेलिकॉम कंपनियों को 5G के लिए एंटीना और टावरों का नया और सघन जाल देशभर में फैलाना पड़ेगा. दूसरी मार्के की बात यह कि 5G आने के बाद 4G खत्म नहीं होगा. मतलब पहले की तरह नहीं कि 3G आया तो 2G को बाय-बाय और 4G आया तो 3G को बाय-बाय. इंटरनेट की 4G तकनीक रहने वाली है. इसके साथ ही एक हाई स्पीड इंटरनेट का जाल तैयार होगा।
5G नेटवर्क के लिए हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो वेव्स का इस्तेमाल होगा. जो कि पहले, यानी 4G, 3G में, नहीं होती थी. ये हाई फ्रीक्वेंसी वाला फंडा आप एक उदाहरण से समझिए. रेडियो पर पहले मीडियम वेव और शॉर्ट वेव पर विविध भारती आदि चैनल आते थे. दिल्ली से ब्रॉडकास्ट होते थे और कानपुर में भी सुनाई देते थे. फिर आया बेहतरीन साउंड क्वालिटी एफएम रेडियो. लेकिन दिल्ली का एफएम दिल्ली में सुना जा सकता है. उसे कानपुर में नहीं सुना जा सकता. कारण, एफएम रेडियो मीडियम वेव और शॉर्ट वेव के मुकाबले हाई फ्रीक्वेंसी वेव्स पर काम करता है. हाई फ्रीक्वेंसी वेव्स की रेंज काफी कम होती है।
इन हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो वेव्स के साथ बस एक यही दिक्कत है. हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो वेव्स से बिना नुकसान के डेटा तेजी से भेजा जा सकता है, लेकिन ये वेव्स बहुत ज़्यादा दूर तक नहीं जा पातीं. इन्हें बिल्डिंग और रास्ते में दूसरी रुकावटें पार करने में बहुत दिक्कत होती है. कई बार बरसात टाइप की चीज़ें भी इन्हें आगे जाने से रोक सकती हैं. अब इसका उपाय यही है कि कम दूरी पर ज्यादा टावर लगाए जाएं.5G के टावर 4G के टावरों के मुकाबले छोटे और ज्यादा पास-पास होंगे. जहां एक 4G टावर से काम चलता था वहां दस 5G टावर तक लगाने पड़ सकते हैं. हालांकि टावरों की संख्या लोकेशन और यूजर्स की सघनता पर भी निर्भर करेगी।
ज्यादा टावर मतलब ज्यादा वेव्स, कहीं 5G शरीर के लिए नुकसानदायक तो नहीं?
जब से वायरलेस तकनीक आई है इसे लेकर लोगों में भ्रम बना हुआ है. अभी हाल ही में हमारी पड़ताल टीम ने 5G तकनीक से जुड़े एक दावे की पड़ताल की है. इसमें बताया गया था कि लोगों को 5G की वजह से किसी भी चीज़ को छूने से करंट लग रहा है. इस दावे की जांच करने पर यह गलत निकला।
रेडिएशन के भय को दिमाग से निकालने के लिए आपको इसके पीछे की साइंस समझनी होगी. रेडिएशन का मतलब होता है एनर्जी का किसी सोर्स या स्रोत से बाहर आना. ऐसा हर ऊर्जा के स्रोत से होता है. मतलब आग जलती हो तो उससे गरमी निकलती है. इसे भी शरीर के हिसाब से रेडिएशन ही माना जाता है. लेकिन कुछ तरह के रडिएशन बीमार कर सकते हैं. वो कौन सी होते हैं ?
खतरनाक और सुरक्षित. इस लिहाज से हम रेडिएशन को दो हिस्सों में बांट सकते हैं. एक आयोनाइजिंग और दूसरा नॉन आयोनाइजिंग. आयोनाइजिंग रेडिएशन वह होता है जिनमें तरंगों की तीव्रता बहुत ज्यादा होती है. मिसाल के तौर पर अल्ट्रावॉयलेट तरंगें जैसे एक्स रे और गामा रेज़. यह शरीर को नुकसान पहुंचा सकती हैं. शरीर की कोशिकाओं और डीएनए तक पर ये असर छोड़ सकती हैं. इसलिए ही कहा जाता है कि बार-बार एक्स-रे न कराएं. यहां तक कि सूरज की रोशनी में भी ज्यादा देर बैठने को मना किया जाता है।
नॉन आइयोनाइजिंग रेडिएशन में वेवलेंथ या तरंगों की तीव्रता काफी कम होती है. इन तरंगों में इतनी ताकत नहीं होतीं कि शरीर के साथ कोई रिएक्शन कर सकें. मिसाल के तौर पर रेडियो वाली मीडियम वेव, शॉर्ट वेव और एफएम वाली तरंगें. इसी तरह की तरंगों का इस्तेमाल टीवी सिग्नल, सेलफोन 4G और 5G तकनीक में होता है. अमेरिकन कैंसर सोसाइटी ने रेडियो वेब्स पर कई बरसों तक की गई अपनी स्टडी में पाया है कि इनका इंसानों पर कोई भी बुरा प्रभाव नहीं पड़ रहा है।
5 जी का डेटापैक भारत में कितने का पड़ेगा
इसका अंदाजा अभी से लगाना थोड़ा मुश्किल और जल्दबाजी भरा होगा. लेकिन हमे इंडस्ट्री से जुड़े लोगों ने बताया कि भारत में इंटरनेट डेटा को लेकर पहले ही काफी कंपीटिशन है. ऐसे में यह 4G के मुकाबले बहुत ज्यादा महंगा नहीं होगा. अगर हम अपने आसपास नजर दौड़ाएं तो चीन एक ऐसा देश है जो कमर्शियल 5G सर्विस शुरू कर चुका है. ग्लोबल टाइम्स की एक खबर के मुताबिक उसने 5जी के शुरुआत के वक्त 30 जीबी के डेटा पैक की कीमत तकरीबन 1500 रुपए रखी थी. अब यह कीमत और भी कम हो चुकी है।
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