
संसद के भीतर आज कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चुनाव सुधारों को लेकर केंद्र सरकार पर बड़ा हमला बोला। उन्होंने कहा कि “बीजेपी देश में वास्तविक चुनाव सुधार नहीं चाहती। चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था को सरकार कंट्रोल कर रही है, जिससे चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।” राहुल ने कहा कि लोकतंत्र की नींव तभी मजबूत होगी, जब चुनाव आयोग स्वतंत्र फैसले ले और सभी दलों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करे।
राहुल गांधी ने सदन के सामने तीन प्रमुख मांगें रखीं—
पहली, चुनाव आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी और न्यायिक निगरानी में किया जाए ताकि राजनीतिक हस्तक्षेप की आशंका न रहे।
दूसरी, चुनाव प्रचार में धनबल पर अंकुश लगाने के लिए एक सख्त और統一 कानून बनाया जाए, जिससे सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए समान नियम लागू हों।
तीसरी, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और VVPAT मिलान को अनिवार्य किया जाए, ताकि मतदान की विश्वसनीयता पर उठते संदेहों का अंत हो सके।
राहुल गांधी ने सरकार से तीन सवाल भी पूछे—
उन्होंने पूछा कि आखिर चुनाव आयोग की नियुक्ति में सरकार की भूमिका इतनी अधिक क्यों है, जबकि आयोग को निष्पक्ष माना जाता है?
दूसरा सवाल— क्या सरकार पारदर्शी चुनाव फंडिंग के लिए राजनीतिक चंदे की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए तैयार है?
और तीसरा सवाल— क्या हर सीट पर VVPAT की 100 प्रतिशत मैचिंग कराना सरकार को मंजूर है या फिर वह इस मुद्दे से बच रही है?
कांग्रेस नेता ने कहा कि लोकतंत्र सिर्फ चुनाव कराने से नहीं चलता, बल्कि स्वतंत्र संस्थाओं की मजबूती से चलता है। “अगर चुनाव आयोग ही स्वतंत्र न रहे तो लोकतंत्र का ढांचा कमजोर हो जाएगा,” उन्होंने चेतावनी दी।
बीजेपी की ओर से राहुल गांधी के आरोपों को खारिज करते हुए कहा गया कि चुनाव आयोग पूरी तरह स्वतंत्र है और सरकार चुनाव सुधारों पर लगातार काम कर रही है। हालांकि, विपक्ष ने सरकार पर सवाल उठाते हुए चर्चा की मांग तेज कर दी है। सदन में आज का माहौल बेहद गर्म रहा और राहुल की टिप्पणियों के बाद सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिली। चुनाव सुधार अब एक बार फिर राष्ट्रीय बहस के केंद्र में आ गया है।









