
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में यदि किसी गीत ने लोगों के दिलों में आग जगाई, तो वह था- वंदे मातरम्। आज भी जब यह गीत गूंजता है, तो इसके साथ स्वतंत्रता संग्राम के दृश्य आंखों के सामने तैरने लगते हैं. जेलों में क्रांतिकारियों की प्रतिज्ञाएँ, स्वदेशी आंदोलन के नारे, और अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध उठती सामूहिक आवाज़ें। इस गीत ने केवल जोश नहीं भरा, बल्कि एक प्रकार की आध्यात्मिक शक्ति भी दी।
फिर भी, जब स्वतंत्र भारत ने अपना राष्ट्रगान चुना, तो इस अमर गीत को राष्ट्रगान का दर्जा नहीं दिया गया। क्यों? दरअसल, यह प्रश्न केवल संगीत या लोकप्रियता का नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की जटिल प्रक्रिया का है। जब 1947 के बाद संविधान सभा भारत की नई पहचान तय कर रही थी, तब उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि देश की बहुस्तरीय विविधता को एक ऐसी प्रतीकात्मक धुन से जोड़ा जाए, जिसमें कोई विभाजन न दिखे। आज़ाद भारत उन घावों से उभरने की कोशिश कर रहा था, जो साम्प्रदायिक तनावों और विभाजन से उपजे थे। ऐसे समय में राष्ट्रगान का चयन एक संवेदनशील और अत्यंत जिम्मेदारी भरा कार्य था।
वंदे मातरम् का प्रथम अंतरा सभी समुदायों के लिए स्वीकार्य था, लेकिन इसके आगे के हिस्सों में देवी-उपासना के स्वर आए, जिससे कुछ समूहों में धार्मिक स्वरूप की व्याख्या उत्पन्न हुई। संविधान सभा का मानना था कि राष्ट्रगान में सबकी आवाज़ शामिल होनी चाहिए- चाहे वह आवाज़ देश के किसी भी धर्म, क्षेत्र या संस्कृति से आती हो। राष्ट्रगान एक ऐसा गीत होना चाहिए जिसे पूरा भारत बिना झिझक, एक साथ गाए। दूसरी ओर, जन गण मन न केवल तटस्थ भाषा में लिखा गया था, बल्कि इसमें भारत की सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता की सुंदर झलक थी। इस गीत में किसी देवी-देवता का उल्लेख नहीं था; यहाँ केंद्र में केवल ‘भारत भाग्य विधाता’ – अर्थात देश की सामूहिक चेतना थी। इसे किसी खास धार्मिक संदर्भ में नहीं रखा जा सकता था, इसलिए यह सभी के लिए समान रूप से स्वीकार्य बन गया।
इसके अलावा, जन गण मन की धुन गंभीर, संतुलित और अंतरराष्ट्रीय समारोहों के लिए व्यावहारिक थी। इसे बड़े समूहों द्वारा आसानी से गाया जा सकता था। राष्ट्रगान के रूप में इसकी प्रस्तुति सुगठित और सार्वभौमिक प्रतीत होती थी। फैसला इस आधार पर नहीं हुआ कि कौन-सा गीत बेहतर है, बल्कि इस आधार पर हुआ कि स्वतंत्र भारत किस प्रकार की पहचान संसार के सामने प्रस्तुत करना चाहता था। वंदे मातरम् को उसकी ऐतिहासिक विरासत और भावनात्मक शक्ति के लिए राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया गया, जबकि जन गण मन को राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया. एक ऐसा गीत जो भारत की आज की विविध और समावेशी आत्मा को अभिव्यक्ति देता है। इस तरह, भारत ने अपने लिए दो धुनें चुनीं. एक, जिसने स्वतंत्रता की राह दिखाई; और दूसरी, जो स्वतंत्रता के बाद एकता की राह दिखाती है।







