बिहार की राजनीति में स्थिरता और सत्ता संतुलन के प्रतीक माने जाने वाले जेडीयू के नेता नीतीश कुमार ने गुरुवार को एक बार फिर इतिहास रचते हुए लगातार 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। पटना के गांधी मैदान में आयोजित भव्य समारोह में राज्यपाल ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस ऐतिहासिक अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के कई वरिष्ठ नेता मौजूद रहे। समारोह में हजारों की भीड़ और कड़ी सुरक्षा व्यवस्था ने इसे एक बड़े राजनीतिक आयोजन का रूप दे दिया।NDA ने एकमत से नीतीश कुमार को विधायक दल का नेता चुना, जिसके बाद सरकार बनाने का दावा राज्यपाल के समक्ष पेश किया गया। नीतीश कुमार ने शपथ ग्रहण के कुछ घंटे पहले ही राज्यपाल से मुलाकात कर नई सरकार का खाका प्रस्तुत किया। इस नए कार्यकाल में उनके साथ दो उप मुख्यमंत्री—सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा—ने भी शपथ ली। यह जोड़ी प्रदेश की राजनीति में भाजपा-जेडीयू तालमेल की नई दिशा का संकेत देती है।आगामी कैबिनेट में लगभग 35 मंत्रियों को शामिल किए जाने की संभावना है। सूत्रों के अनुसार, जेडीयू और भाजपा के साथ-साथ अन्य NDA सहयोगियों को भी प्रतिनिधित्व मिलने वाला है। महिला नेताओं, पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों को स्थान देने पर भी विचार किया जा रहा है ताकि सामाजिक संतुलन और राजनीतिक संदेश दोनों मजबूत रहें।नीतीश कुमार का यह नया कार्यकाल कई मायनों में चुनौतीपूर्ण होगा। राज्य में बेरोज़गारी, बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य सेवाएँ और कानून-व्यवस्था ऐसे मुद्दे हैं जिन पर तेज़ और परिणामकारी काम की अपेक्षा जनता कर रही है। नीतीश कुमार ने शपथ के बाद संक्षिप्त संबोधन में कहा कि उनकी सरकार “सुशासन के मिशन को और मज़बूत करेगी” और युवाओं व किसानों पर विशेष ध्यान देगी।विशेषज्ञों का मानना है कि नीतीश कुमार का अनुभव और गठबंधन प्रबंधन क्षमता बिहार को एक स्थिर प्रशासन देने में फायदेमंद सिद्ध हो सकती है। हालांकि, बदलते राजनीतिक समीकरणों के बीच उन्हें अपनी छवि और फैसलों को लेकर पहले से अधिक सजग रहना होगा।कुल मिलाकर, नीतीश कुमार की वापसी ने बिहार की सियासत में एक बार फिर संदेश दिया है कि वे अब भी प्रदेश की राजनीति का सबसे प्रभावशाली चेहरा बने हुए हैं।






