
जब घाटों पर गूंजती है आरती की स्वर लहरियां, जब डूबते सूरज को प्रणाम करती लाखों हथेलियां एक साथ उठती हैं — तब एहसास होता है कि छठ केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का उत्सव है। यह पर्व उस मातृशक्ति की साधना है जो जल, वायु और सूर्य से संवाद करती है — बिना किसी दिखावे, बिना किसी लालच के।
छठ मैया का व्रत सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह अनुशासन, संयम और सादगी की पराकाष्ठा है।
चार दिन तक व्रती बिना नमक, बिना स्वाद के भोजन करते हैं, घंटों खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं, पर चेहरे पर थकान नहीं — केवल विश्वास की चमक।
यही तो भारतीय नारी की पहचान है — त्याग में तेज, और विश्वास में विजय।
आज जब समाज भोगवादी हो चला है, जब परंपराएं “रिवाज” बनकर खो रही हैं, तब छठ हमें याद दिलाता है कि आस्था केवल पूजा नहीं, एक जीवनशैली है।
यह पर्व सिखाता है कि जब मन स्वच्छ हो, तो गंगाजल भी पवित्रता में निखर उठता है।
जब नीयत सच्ची हो, तो सूर्य की किरणें भी आशीर्वाद बनकर उतरती हैं।
छठ पर्व की सबसे बड़ी सुंदरता यही है कि यह किसी जाति, वर्ग या धर्म की सीमाओं में नहीं बंधा।
गाँव का घाट हो या महानगर की सोसायटी, सब मिलकर रास्ते साफ करते हैं, घाट सजाते हैं, दीप जलाते हैं।
कहीं से कोई भेद नहीं, सब एक सूत्र में बंधे — “छठ मैया सबकी हैं”।
इस बार जब हम अर्घ्य देंगे, तो एक संकल्प भी लें —
नदी को बचाने का, स्वच्छता को आदत बनाने का, और समाज को जोड़ने का।
क्योंकि छठ केवल सूर्य की पूजा नहीं,
बल्कि उस उजाले की साधना है जो हर दिल को रोशन करता है।








