
धनतेरस: समृद्धि, स्वास्थ्य और परंपरा का पर्व
संपादकीय-
धनतेरस का पर्व हर साल दीपावली की शुरुआत में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह दिन केवल खरीदारी का उत्सव नहीं, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। धनतेरस का अर्थ है “धन का दिन”, और इसे विशेष रूप से सोना, चांदी, आभूषण और नए बर्तनों की खरीदारी के लिए शुभ माना जाता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार, इस दिन खरीदी गई वस्तुएं घर में समृद्धि, सुख और स्वास्थ्य लेकर आती हैं।
धनतेरस का त्योहार भगवान धन्वंतरि से जुड़ा हुआ है, जिन्हें आयुर्वेद का जनक और अमृत कलश का दाता माना जाता है। कथा के अनुसार, धन्वंतरि समुद्र मंथन के समय अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे। इसलिए इस दिन धन्वंतरि पूजन करने से रोग, रोगियों की सुरक्षा और लंबी आयु की कामना होती है।
इसके अलावा, यम दीपक जलाने की परंपरा भी धनतेरस का अभिन्न हिस्सा है। माना जाता है कि यमराज की आराधना और दीपक जलाने से परिवार में स्वास्थ्य, लंबी उम्र और खुशहाली आती है। इस दिन कुल छह शुभ मुहूर्तों में खरीदारी करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है, जो विशेष रूप से सोना, चांदी, नए बर्तन और घरेलू उपयोग की अन्य वस्तुओं के लिए शुभ माने जाते हैं।
धनतेरस केवल भौतिक संपत्ति की प्राप्ति का दिन नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक और पारंपरिक मूल्यों का भी प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि संपत्ति और समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य, परिवार और सामाजिक जिम्मेदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। आज के दौर में जब लोग ऑनलाइन और आधुनिक खरीदारी की ओर अधिक ध्यान देते हैं, तब भी पारंपरिक पूजा और मुहूर्त का महत्व कम नहीं हुआ है।
इस दिन का वास्तविक संदेश है: संपत्ति का सदुपयोग, परिवार की खुशहाली और स्वास्थ्य का ध्यान। इसलिए धनतेरस के अवसर पर केवल खरीदारी तक सीमित न रहकर, इसे अपने जीवन में समृद्धि, स्वास्थ्य और सकारात्मकता लाने का माध्यम बनाना चाहिए।
अंततः धनतेरस हमें यह सीख देता है कि भौतिक समृद्धि और आध्यात्मिक समृद्धि साथ-साथ चलें तो जीवन पूर्ण होता है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि परंपरा, श्रद्धा और सकारात्मक कर्म जीवन में स्थायी खुशहाली लाते हैं।