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मायावती का वादा और यूपी की सियासत में बसपा की नई राह

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Written by
Rishabh Rai

उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर गर्माई हुई है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमो मायावती ने हाल ही में एक बड़ा बयान देते हुए वादा किया कि वे “कोई कसर नहीं छोड़ेंगी” और राज्य में बसपा की पांचवीं सरकार बनाकर दिखाएंगी। यह वक्तव्य न केवल मायावती की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को दर्शाता है, बल्कि यूपी की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में बदलाव की संभावनाओं पर भी एक नई बहस छेड़ देता है।

मायावती एक अनुभवी नेता हैं। वे चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और दलित राजनीति की सबसे प्रमुख आवाज मानी जाती हैं। हालांकि, पिछले कुछ चुनावों में बसपा को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। पार्टी को लोकसभा और विधानसभा दोनों स्तरों पर लगातार नुकसान उठाना पड़ा है। ऐसे में मायावती का यह बयान साफ संकेत देता है कि वे अब पुनः सक्रिय भूमिका में आना चाहती हैं और 2027 की विधानसभा चुनावों को लक्ष्य बनाकर पार्टी को नई दिशा देना चाहती हैं। लेकिन यह राह आसान नहीं होगी। वर्तमान में यूपी की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी का दबदबा है और समाजवादी पार्टी भी एक मजबूत विपक्षी ताकत के रूप में खड़ी है। ऐसे में बसपा के लिए न सिर्फ अपनी पुरानी जमीन वापस पाना चुनौती होगा, बल्कि युवा मतदाताओं को भी एक बार फिर से अपने साथ जोड़ना होगा, जो अब नई राजनीतिक प्राथमिकताओं की ओर देख रहे हैं।

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मायावती को अब केवल दलित वोटबैंक पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। उन्हें बहुजन गठबंधन की पुरानी नीति को फिर से मजबूत करना होगा, जिसमें दलित, पिछड़े, मुस्लिम और अन्य वंचित तबकों को साथ लाने की रणनीति शामिल थी। साथ ही, संगठन को जमीनी स्तर पर सक्रिय बनाना और डिजिटल व सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं से संवाद स्थापित करना भी बेहद जरूरी होगा।

इस बार मायावती के बयान में जो दृढ़ता दिख रही है, वह उनके अनुभव और आत्मविश्वास का परिचायक है। लेकिन जनता अब सिर्फ वादों से नहीं, काम और पारदर्शिता से प्रभावित होती है। ऐसे में बसपा को एक सशक्त और व्यवहारिक रोडमैप पेश करना होगा, जिसमें शिक्षा, रोजगार, कानून-व्यवस्था और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर स्पष्ट नीतियाँ हों।

मायावती का यह संकल्प कि वे “कोई कसर नहीं छोड़ेंगी”, यदि केवल भाषणों तक सीमित न रहकर कार्य में भी तब्दील हो, तो बसपा एक बार फिर से यूपी की सत्ता की दौड़ में मज़बूती से शामिल हो सकती है। लेकिन इसके लिए उन्हें अपने पुराने ढर्रे से बाहर निकलकर नयी राजनीतिक ज़रूरतों को समझना और अपनाना होगा।

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