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‘Howdy टैक्स!’ – जब दोस्ती की कीमत 50% निकली

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Written by
Rishabh Rai

“अबकी बार, ट्रंप सरकार!”
यह नारा 2019 में दुनिया भर के अखबारों और टीवी चैनलों पर गूंजा था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ह्यूस्टन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ मंच साझा कर रहे थे। उस समय इसे भारत-अमेरिका संबंधों में ‘स्वर्ण युग’ की शुरुआत माना गया था। लेकिन छह साल बाद, जब अमेरिका ने भारत से होने वाले आयात पर 50% टैरिफ लगा दिया, तो यह ‘स्वर्ण युग’ अचानक ‘स्वर्ण कर’ में बदल गया – और अब भारत के करोड़ों छोटे-बड़े उत्पादकों पर तबाही की आहट सुनाई दे रही है।

टैरिफ की चोट कितनी गहरी?

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ट्रंप की वापसी के बाद लागू हुआ यह टैरिफ भारतीय अर्थव्यवस्था को ₹5.4 लाख करोड़ के निर्यात क्षेत्र में सीधी चोट देने वाला है। इससे न केवल भारत के सबसे बड़े एक्सपोर्ट मार्केट – अमेरिका – में हमारी प्रतिस्पर्धा कमजोर होगी, बल्कि इससे हजारों फैक्ट्रियां, लाखों मज़दूर और करोड़ों परिवार प्रभावित होंगे।

प्रभावित होने वाले प्रमुख सेक्टर्स:

टेक्सटाइल और रेडीमेड गारमेंट्स

भारत अमेरिका को हर साल ₹80,000 करोड़ से अधिक का कपड़ा निर्यात करता है।

अब 50% टैरिफ लगने के बाद भारतीय कपड़ा अमेरिका में महंगा हो जाएगा।

वहीं, वियतनाम और चीन का सस्ता माल बाज़ार हथिया लेगा।

इसका सीधा मतलब है: डिमांड घटेगी → प्रोडक्शन घटेगा → नौकरियां जाएंगी।

रत्न और आभूषण (Gems & Jewellery)

भारत से अमेरिका को ₹1.2 लाख करोड़ से अधिक के हीरे-जवाहरात और गहने जाते हैं।

यह इंडस्ट्री 50 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देती है।

अब अमेरिकी खरीदार थाईलैंड, तुर्की या चीन से सस्ते विकल्प खरीदेंगे।

झींगा और समुद्री उत्पाद

भारत दुनिया का सबसे बड़ा झींगा निर्यातक है, और अमेरिका सबसे बड़ा खरीदार।

टैरिफ बढ़ते ही अमेरिका वियतनाम या इंडोनेशिया की ओर रुख कर सकता है।

इस सेक्टर से जुड़े लाखों मछुआरे और प्रोसेसिंग यूनिट्स रोज़गार संकट में आ सकते हैं।

चमड़ा और फुटवियर

कानपुर, आगरा, चेन्नई जैसे शहरों का चमड़ा उद्योग अमेरिकी बाजार पर बहुत निर्भर है।

ड्यूटी के चलते अब ऑर्डर घटेंगे, और MSME सेक्टर को भारी नुकसान होगा।

इंजीनियरिंग और मशीनरी

भारत से अमेरिका को कई तरह के इंजीनियरिंग गुड्स और ऑटो पार्ट्स जाते हैं।

अब टैरिफ से ये सामान अमेरिका में कम प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे।

नीतिगत चूक या अंधी दोस्ती का नतीजा?

यह कोई अचानक उठाया गया कदम नहीं है। 2019 में जब अमेरिका ने भारत से GSP (Generalized System of Preferences) छीन लिया था, तब भी संकेत मिल गए थे कि व्यापार और कूटनीति में सिर्फ मंच साझा करना काफी नहीं होता। भारत ने तब न तो सशक्त प्रतिरोध किया, न ही वैकल्पिक रणनीति अपनाई।

कहना होगा – “मोदी जी की विदेश नीति ने जितने एयरपोर्ट बदले, उतने शायद व्यापारिक समझौते नहीं किए।”

आम जनता पर क्या असर होगा?

MSME सेक्टर को नुकसान → लाखों मज़दूरों की नौकरियों पर खतरा

रोज़गार में कटौती → उपभोग घटेगा → बाजार में सुस्ती

घरेलू उत्पादन में गिरावट → GDP पर असर

एक्सपोर्ट घटेगा → विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव

सीधी सी बात है – यह टैरिफ केवल व्यापार नहीं, भारत के श्रमिक वर्ग की कमर तोड़ने वाला निर्णय साबित हो सकता है।

अब आगे क्या?

भारत को अब ज़रूरत है:

नए निर्यात बाज़ारों की खोज – यूरोप, अफ्रीका, खाड़ी देश

MSME के लिए सब्सिडी और टैक्स राहत

अमेरिका से फिर से व्यापार वार्ता – WTO के माध्यम से या द्विपक्षीय स्तर पर

‘दिखावटी कूटनीति’ की जगह ‘रणनीतिक आर्थिक नीति’

भारत-अमेरिका की मित्रता अब पॉलिटिकल शो से बाहर निकलकर आर्थिक हकीकत में प्रवेश कर चुकी है। इस हकीकत में भावनाएं नहीं चलतीं, सिर्फ मुनाफे और नुकसान के हिसाब चलते हैं। अगर भारत अब भी सिर्फ झूले और गले मिलने वाली विदेश नीति पर भरोसा करता रहा, तो अगली बार हमें सिर्फ टैक्स ही नहीं, शायद बाज़ार भी गंवाना पड़े।

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