Responsive Menu

Download App from

Download App

Follow us on

Donate Us

क्या धर्म का मंच अब समाज को जज करने का अड्डा बन गया है?

[responsivevoice_button voice="Hindi Female"]
Author Image
Written by
Rishabh Rai
  • संपादकीय- ऋषभ राय

भारत की ज़मीन पर धर्म हमेशा से एक ताकत रहा है,समाज को जोड़ने की, समझ बढ़ाने की, और रास्ता दिखाने की। लेकिन जब वही धर्म का मंच बार-बार ज़िंदगी के निजी फैसलों पर अपमानजनक टिप्पणियों के लिए इस्तेमाल होने लगे, तो सवाल उठना लाज़िमी है। कथावाचक अनिरुद्धाचार्य महाराज एक बार फिर सुर्खियों में हैं, इस बार उन्होंने लिव-इन रिलेशनशिप को “कुत्तों का कल्चर” बताया है. उन्होंने कहा, “लिव-इन में तो कुत्ते रहते हैं। हमारे देश के कुत्ते हजारों साल से लिव-इन में रह रहे हैं।” अब सवाल ये है कि क्या इस तरह की भाषा किसी कथावाचक को शोभा देती है? क्या ये मंच सामाजिक समरसता का है या लोगों की ज़िंदगी पर जजमेंट पास करने का?

ध्यान रहे, यह वही कथावाचक हैं जिन्होंने पहले भी कहा था कि “लड़कियों की शादी 18 साल से पहले कर देनी चाहिए।” यानी न सिर्फ महिलाओं के अधिकारों पर प्रश्नचिह्न, बल्कि आधुनिक सोच और संविधानिक स्वतंत्रता पर भी सीधा हमला।

Advertisement Box

धर्मगुरु या सोशल इन्फ्लुएंसर?

आज के कथावाचक केवल मंदिरों या प्रवचनों तक सीमित नहीं हैं। सोशल मीडिया पर लाखों-करोड़ों फॉलोअर्स हैं, हर बात लाखों तक पहुंचती है। ऐसे में जब आप सार्वजनिक मंच से किसी जीवनशैली को पशुओं से जोड़ते हैं, तो वह सिर्फ एक राय नहीं होती, वह एक सामाजिक संदेश बन जाती है, जो नफरत और हेट-स्पीच को बढ़ावा देती है। लिव-इन रिलेशनशिप भले ही हर किसी को स्वीकार न हो, लेकिन यह भारत के संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त वैकल्पिक जीवनशैली है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा बताया है। ऐसे में एक धार्मिक मंच से इसे “पशु संस्कृति” कहना न सिर्फ कानून की अवहेलना है, बल्कि सामाजिक गैरजिम्मेदारी का नमूना भी।

क्या धार्मिक मंच पर कोई मर्यादा नहीं?

धर्म के मंच से अगर हर दूसरे दिन महिलाओं की स्वतंत्रता, युवा पीढ़ी के फैसलों, या वैकल्पिक जीवनशैली पर इस तरह के बयान आने लगें, तो फिर इन प्रवचनों और भड़काऊ भाषणों में फर्क ही क्या बचता है? जो लोग धर्म के नाम पर जुड़ते हैं, वे संस्कार, संवेदना और दिशा की तलाश में आते हैं. जजमेंट, कटाक्ष और अपमान के लिए नहीं। धर्म अगर जोड़ने की बजाय तोड़ने लगे, तो उसे आत्ममंथन की ज़रूरत है।

अनिरुद्धाचार्य महाराज जैसे लोगों की बातों पर बहस होनी चाहिए, लेकिन सवाल भी उनसे ही होने चाहिए, क्या आप सचमुच समाज को दिशा दे रहे हैं, या सिर्फ विवादों से लाइमलाइट में बने रहने का तरीका ढूंढ रहे हैं? भक्तों की भीड़ होना एक बात है, और सद्गुणों से भरा होना दूसरी। देश आज संवेदनशील दौर में है, जहां धर्म के नाम पर बयान नहीं, मर्यादा चाहिए।

आज का राशिफल

वोट करें

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपने राहत कार्यक्रम की अगली किस्त जारी करने के लिए पाकिस्तान पर 11 नई शर्तें लगाई हैं। वैश्विक मंच पर क्या यह भारत की बड़ी जीत है?

Advertisement Box

और भी पढ़ें

WhatsApp