
नई दिल्ली, ब्यूरो |
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के तीखे आरोपों ने भारतीय लोकतंत्र के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ — चुनाव आयोग — को सीधे कटघरे में खड़ा कर दिया है। राहुल ने संसद में कहा,
“चुनाव अधिकारी वोटों की चोरी कर रहे हैं। हम छोड़ेंगे नहीं, चाहे वे रिटायर हो जाएं।” यह कथन केवल एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि एक संवैधानिक संस्था की विश्वसनीयता पर सीधा प्रहार है।
चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया – “धमकियों से न डरें अफसर”
राहुल गांधी के बयान के कुछ ही घंटे बाद चुनाव आयोग ने जवाबी बयान जारी कर कहा, “अफसरों को ऐसी धमकियों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।” हालांकि, आयोग का यह जवाब रक्षात्मक प्रतीत हुआ, जिसने बहस को और तेज़ कर दिया।
पर्दे के पीछे क्या? विपक्ष के पुराने आरोपों की कड़ी
यह पहली बार नहीं है जब चुनाव आयोग पर पक्षपात का आरोप लगा है:
2024 लोकसभा चुनावों में ईवीएम में गड़बड़ी और VVPAT की पारदर्शिता को लेकर बार-बार सवाल उठे।
गुजरात और यूपी चुनावों में चुनाव तारीखों की घोषणा और प्रचार रोके जाने को लेकर भी आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठे। राहुल गांधी का ताजा बयान इन्हीं चिंताओं को फिर से केंद्र में लाता है।
राहुल का एजेंडा या जनता की चिंता?
कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राहुल गांधी का यह बयान आगामी विधानसभा चुनावों और 2029 की रणनीति का हिस्सा है। वे जनता को यह बताना चाहते हैं कि “संस्थाएं भी अब सत्ता के इशारे पर चल रही हैं।”
वहीं कई नागरिक संगठनों का कहना है कि यदि चुनाव आयोग पर भरोसा ही न रहे, तो आम मतदाता के पास लोकतंत्र में आस्था बनाए रखने का विकल्प क्या है?
कानूनी पक्ष क्या कहता है?
भारतीय संविधान की धारा 324 चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने की जिम्मेदारी सौंपती है। यदि इस संस्था पर भरोसा टूटेगा, तो लोकतंत्र की आत्मा घायल होगी।
राहुल गांधी के शब्दों में गुस्सा था, पर सवाल गंभीर हैं।
अगर चुनाव आयोग पर जनता का भरोसा दरकता है, तो यह केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं रहेगा — यह लोकतंत्र की नींव को ही चुनौती