किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज कि डॉक्टरों ने किया कमाल,आइजेनमेंगर सिंड्रोम से पीड़ित महिला ने बच्चे को दिया जन्म
लखनऊ, किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में बीते दिनों आइजेनमेंगर सिंड्रोम से पीड़ित महिला ने बच्चे को जन्म देकर नया रिकॉर्ड कायम किया। इस बीमारी में व्यक्ति के दिल में शुद्ध और दूषित खून के बीच रहने वाली दीवार नहीं होती है। इसकी वजह से आमतौर पर ऐसे मरीजों की मौत वयस्क होने से पहले ही हो जाती है। केजीएमयू प्रशासन के अनुसार इस बीमारी से पीड़ित महिला द्वारा बच्चे को जन्म देना का यह पहला मामला है। स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग के साथ ही कार्डियोलॉजी, एनेस्थीसिया और क्रिटिकल केयर विभाग ने साझा प्रयास किया।
स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की प्रो. एसपी जैसवार ने बताया कि गोरखपुर निवासी प्रियंका पांडेय 18 फरवरी को विभाग आई थीं। गर्भ के साथ ही इनको दिल संबंधी बीमारी भी थी। इसलिए महिला को इमरजेंसी हालात में भर्ती किया गया। महिला के परिवारीजनों को इस जानलेवा सिंड्रोम से पीड़ित होेने की जानकारी नहीं थी। जांच में जब पता चला तो सबसे पहले बच्चे के फेफड़े को मजबूत करने के लिए कुछ इंतजार करने की योजना बनाई गई।
इसके बाद कार्डियोलॉजी, एनेस्थीसिया और क्रिटिकल केयर विभाग के विशेषज्ञों के साथ सर्जरी करके बच्चे को बाहर निकालने का फैसला किया गया। अभी ऐसे किसी भी मामले में मरीज की जान बचाना संभव नहीं हो पाया है। इसलिए सभी ने बेहद सतर्कता से काम को अंजाम दिया। सर्जरी के बाद मरीज को वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया। दो से तीन दिन बाद जब महिला की स्थिति ठीक लगी तो वेंटिलेटर सपोर्ट हटाया गया। अब महिला और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं। प्रो. जैसवार के अनुसार इस तरह के कुछ मामले पहले आये हैं लेकिन अभी तक मां और शिशु दोनों में से किसी की जान नहीं बचाई जा सकी है। यह इस तरह का पहला मामला है।
केजीएमयू के डॉ. करन कौशिक के अनुसार आइजेनमेंगर सिंड्रोम दुर्लभ और जानलेवा बीमारी है। देश में .003 फीसदी लोग ही इस बीमारी से पीड़ित हैं। इसका मतलब है कि करीब एक लाख व्यक्ति में से एक को यह बीमारी होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बीमारी में गर्भधारण न करने की सलाह दी है।
इस बीमारी में व्यक्ति की सांस बहुत ज्यादा फूलती है। दिल में शुद्ध खून अलग न होने की वजह से मरीज के शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। आखिर में उसकी मौत हो जाती है। आमतौर पर मरीज वयस्क होने से पहले ही गुजर जाते हैं। बहुत कम मामलों में वे गर्भधारण करने लायक उम्र में पहुंचते हैं।
टीम प्रो.एसपी जैसवार, डॉ. सीमा, डॉ. मोनिका, डॉ. तन्यम तिवारी, डॉ. करन कौशिक, डॉ. अंकुर चौहान, डॉ. जिया अर्शद, डॉ. रतिप्रभा।
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