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लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ पर 10 घंटे चर्चा संभव, पीएम भी ले सकते हैं हिस्सा; केंद्र ने कहा-SIR पर बहस के लिए तैयार, समय सीमा न थोपें

लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ पर 10 घंटे चर्चा संभव
लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ पर 10 घंटे चर्चा संभव
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Written by
Rishabh Rai

लोकसभा का शीतकालीन सत्र आने वाले दिनों में बेहद अहम होने जा रहा है। स्रोतों के मुताबिक सदन में राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ पर लगभग 10 घंटे की विस्तृत चर्चा कराए जाने का प्रस्ताव तैयार है। खास बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस बहस में हिस्सा ले सकते हैं, जिससे इसकी राजनीतिक और सामाजिक महत्ता और बढ़ जाएगी। संसद के इतिहास में विरले ही अवसर रहे हैं जब किसी सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान से जुड़े मुद्दे पर इतना लंबा समय तय किया गया हो। संसद में यह चर्चा न केवल सांस्कृतिक दृष्टि से, बल्कि राष्ट्रवाद की अवधारणा, संविधान की मूल भावना और भारतीय पहचान के बहुआयामी स्वरूप को समझने के लिए भी महत्वपूर्ण होगी। माना जा रहा है कि सरकार इस बहस के माध्यम से यह संदेश देना चाहती है कि राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान जैसे मुद्दों पर राष्ट्रीय एकता और साझा मूल्यों को लेकर व्यापक सहमति बनना जरूरी है।

इसी बीच एक और बड़ा राजनीतिक संकेत केंद्र सरकार की ओर से आया है। सरकार ने कहा है कि वह SIR—SPECIAL INTEREST RESOLUTION (विशेष विषय प्रस्ताव) पर सदन में बहस के लिए पूरी तरह तैयार है, बशर्ते विपक्ष इस पर कोई समय सीमा न थोपे। संसदीय कार्य मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि सरकार खुली और स्वस्थ बहस चाहती है, और उसके लिए पर्याप्त समय देने को भी तैयार है। यह बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले कई सत्रों में विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच बहस की अवधि, विषय और प्रक्रिया को लेकर लगातार टकराव की स्थिति बनी रही है।

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सरकारी सूत्रों का यह भी कहना है कि विपक्ष ‘वंदे मातरम्’ पर चर्चा को लेकर रणनीति तैयार कर रहा है। कुछ दल इसे सांस्कृतिक मुद्दे को राजनीतिक रंग देने के प्रयास के रूप में पेश कर सकते हैं, जबकि कुछ क्षेत्रीय दल अपनी-अपनी विचारधाराओं के आधार पर सरकार के रुख को चुनौती दे सकते हैं। हालांकि सरकार का तर्क है कि ‘वंदे मातरम्’ सांस्कृतिक-राष्ट्रवादी विरासत का साझा प्रतीक है और इस पर चर्चा से समाज में सकारात्मक संदेश जाएगा। संसदीय परंपराओं को देखते हुए 10 घंटे की चर्चा का प्रस्ताव अपने आप में एक बड़ा संकेत माना जा रहा है। माना जा रहा है कि इससे संसद की गंभीरता और राष्ट्रीय मुद्दों पर व्यापक विमर्श की परंपरा को नया बल मिलेगा। यदि प्रधानमंत्री वास्तव में इस चर्चा में शामिल होते हैं, तो यह बहस न केवल राजनीतिक रूप से, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी ऐतिहासिक साबित हो सकती है।

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