17/06/2025

अवध सूत्र

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ईरान- इजरायल की जंग- क्या विश्व युद्ध की आहट ?

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बीते कई दिनों से इजरायल और ईरान के बीच हमले लगातार तेज होता जा रहा है… ईरान ने इजरायल के कई जगहों पर बैलिस्टिक मिसाइल से हमले किए. जिसमें से बेन गुरियन एयरपोर्ट और तेल अवीव के पूर्वी इलाकों में विस्फोट हुए. IDF ने सोशल मीडिया पोस्ट में बताया कि इस वक्त लाखों इजरायली देश के तमाम शहरों और समुदायों में सायरन बजने की वजह से बचने के लिए शेल्टर्स की ओर भाग रहे हैं.
लेकिन इन सब के बीच सवाल ये आखिर यह हमला क्यों हो रहा है. क्या यह लड़ाई वर्ल्ड वॉर 3 का स्वरूप तो नहीं ले लेगा ?  आइए विस्तार से समझते हैं.

दरअसल, इजरायल का सबसे बड़ा मुद्दा ईरान का परमाणु कार्यक्रम है. ईरान कहता है कि उसका न्यूक्लियर कार्यक्रम शांतिपूर्ण है. लेकिन पश्चिमी देश और इजरायल का मानना है कि ईरान परमाणु बम बनाने की दिशा में काम कर रहा है. इजरायल का कहना है कि वह किसी भी हाल में ईरान को परमाणु हथियार बनाने नहीं देगा. जिस पर यह पूरा मामला गरमाया हुआ है. गौरवतलब है कि. इजरायल ईरान को अपनी संप्रभुता पर खतरा मानता है. इजरायल को लगता है की ईरान अगर न्यूक्लियर बना लेता है तो उसका इस्तेमाल भविष्य में इजरायल पर कर सकता है. जिसको लेकर इजरायल ने 13 जुन को ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला कर दिया. जिसमें अब तक कई ईरानी मारे जा चुके हैं, जिनमें 9 न्यूक्लियर साइंटिस्ट और 20 से ज्यादा ईरानी कमांडर्स शामिल हैं. इसके अलावा कई घायल हैं. तो दूसरी ईरान ने भी अपनी बैलिस्टिक मिसाइल से लगातार हमले कर रहा है. यरुशलम और तेल अवीव जैसे बड़े शहरों में लगातार सायरन बज रहे हैं. ईरान की ओर से लगातार तेल अवीव को निशाना बनाकर हमला किया जा रहा है. इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने ईरान पर हमले और तेज करने की बात कही है. ईरान की राजधानी तेहरान में रविवार रात को एक रिहायशी गगनचुंबी इमारत पर इजरायली हमले में कई बच्चों सहित कई लोगों की मौत हो गई है और यह आकाड़ा और भी बढ़ सकता है. लेकिन सवाल अब भी क्या यह लड़ाई वर्ल्ड वॉर 3 में तो नहीं बदल सकती ?
ऐसा इसलिए क्योंकि इस लड़ाई में चीन और रूस का रोल बहुत अहम हो जाता है. जहां एक तरफ खुलकर अमेरिका इजरायल के साथ खड़ा है. तो दूसरी तरफ चीन और रूस अब तक ईरान के साथ खड़े होते नजर आ रहे है. जाहिर सी बात है कि युद्ध तब शुरू होता है जब कई देश एक साथ युद्ध में शामिल हो जाएं. मौजूदा स्थिति में अगर देखा जाए तो भले ही अलग अलग देश अगल अगल देशों का समर्थन करता हुआ नजर आ रहा हो लेकिन परिस्थियां कुछ यू ही बनी रही तो यह बदल सकती है. ऐसा इसलिए अमेरिका और नाटो अमेरिका इज़रायल का मुख्य सहयोगी है. मध्य पूर्व में 40000 सैनिक तैनात हैं. अगर ईरान पर और हमले होते हैं, तो अमेरिका शामिल हो सकता है, जो नाटो को भी अपने तरफ खींच सकता है. तो वहीं रूस और चीन ये देश ईरान के करीबी सहयोगी हैं. अगर वे सैन्य सहायता देते हैं, तो यह युद्ध बड़े स्तर पर जा सकता है.ऐसा इसलिए क्य़ोकि रूस ने 13 जून को इज़रायल के हमले की निंदा की साथ ही कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है. क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने चेतावनी दी कि इससे युद्द हो सकता है.
रूस ने ईरान को एस-300 वायु रक्षा प्रणाली दी है. यूक्रेन युद्ध में शाहेद-136 ड्रोन का इस्तेमाल किया है. अगर रूस ईरान को और हथियार या सैनिक भेजता है, तो यह संघर्ष को बढ़ा सकता है. दूसरी ओर चीन आर्थिक और कूटनीतिक दबाव का रुख अपना रहा है. चीन ने इरान के साथ 400 अरब डॉलर का ऊर्जा समझौता किया है. इसे रणनीतिक साझेदार माना है. इसिलिए इज़रायल के हमले को अस्थिरता फैलाने वाला बताया. सैन्य सहायता को लेकर अभी तक चीन ने सैन्य हस्तक्षेप से इनकार किया है, लेकिन वह ईरान को आर्थिक सहायता दे सकता है, जो युद्ध को लंबा खींच सकता है. अगर हम रणनीति के आधार पर बात करें तो चीन मध्य पूर्व में अपने तेल और गैस हितों को सुरक्षित रखना चाहता है. अगर इज़राइल-अमेरिका गठबंधन मजबूत हुआ, तो चीन ईरान के साथ खड़ा हो सकता है. तो वहीं अगर हम अन्य देशों की भूमिका की बात करें तो जॉर्डन और अरब देश की तो जॉर्डन ने ईरान के ड्रोन को रोकने में मदद की, लेकिन सऊदी अरब और यूएई तटस्थ रहना चाहते हैं. तुर्की ने मध्यस्थता की पेशकश की, लेकिन इज़राइल के साथ उसके रिश्ते तनावपूर्ण हैं. लेकिन भारत ने शांति की अपील की है, और अपने नागरिकों को मध्य पूर्व से लौटने की सलाह दी है. हालांकि आगे क्या कुछ होगा ये तो समय ही बताएगा.

 

 

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